स्वामी विवेकानंद की जीवन यात्रा
Sadhana Path|January 2024
जिन्हें आज पूरा विश्व स्वामी विवेकानंद के नाम से जानता है उनका वास्तविक एवं बचपन का नाम नरेंद्र था। नरेंद्र से हुए विवेकानंद एवं विवेकानंद से हुए स्वामी विवेकानंद के पीछे भी एक दिलचस्प घटना एवं लंबी यात्रा है।
नीलम
स्वामी विवेकानंद की जीवन यात्रा

12 जनवरी, 1863 ई. में कलकत्ता के एक संपन्न परिवार में विवेकानंद जन्म हुआ। पिता 'विश्वनाथ दत्त' एक प्रसिद्ध वकील थे। माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं।

माता जी रात्रि में उन्हें जब रामायण की कहानियां सुनाती तो वे हनुमान जी की बहुत प्रशंसा करते साथ ही भगवान शिव को अपना आराध्य मानते और अक्सर अपनी मां से हंसकर कहते, 'मां मैं शिव हूं।' उनकी बातें सुन मां मन ही मन डरती और सोचने लगती कि कहीं ये भी अपने दादा जी की तरह संन्यासी ना हो जाए। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि बचपन से ही वो अपने से छोटे ही नहीं बड़े बच्चों का भी नेतृत्व किया करते थे, इनसे बड़े बच्चे भी इन्हें अपना नेता कहने में नहीं झिझकते थे। घर के खुले वातावरण ने नरेंद्र की बहुमुखी प्रतिभा को उभारने में पूरा योगदान दिया। नरेंद्र स्वभाव से ही दानशील थे। द्वार पर आए किसी भी साधु को खाली हाथ लौटाना उन्हें नहीं भाता था। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के होने के कारण नरेंद्र सदैव अध्यापकों के चहेते शिष्य रहे। अध्यापकों ने कई बार देखा कि वे एक ही समय में दो विपरीत मनोदशा वाले कार्य भी सहजतापूर्वक कर लेते थे। तैराकी, घुड़दौड़, खेल-कूद के अलावा वे वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भी उत्साहपूर्वक भाग लेते।

नरेंद्र ने संगीत के प्रति रुचि विरासत में पाई थी। उन्होंने निरंतर पठन-पाठन से मस्तिष्क की शक्ति का इतना विकास कर लिया था कि वह पृष्ठ की प्रथम और अंतिम पंक्ति पढ़ कर ही लेखक का आशय जान लेते थे। इस विषय में वे स्वयं लिखते हैं- जब कहीं लेखक वाद-विवाद के द्वारा अपनी बात के स्पष्टीकरण के लिए चार-पांच पृष्ठ या इससे भी अधिक पृष्ठ ले लेता, वहां मैं कुछ पंक्तियों को पढ़ कर ही उनके तर्क के झुकाव को समझ लेता।

नटरबट बालक नरेन्द्रनाथ

धीरे-धीरे बालक नरेन्द्रनाथ कुछ बड़े हुए, तो उनका नटखटपन बढ़ता गया। प्रारंभ में उनका यह गुण बालसुलभ चपलता समझा गया, किंतु अवस्था बढ़ने के साथ-साथ उनका नटखटपन उद्दण्डता में बदलता गया। नरेन्द्र पर भय या डांट-फटकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।

Diese Geschichte stammt aus der January 2024-Ausgabe von Sadhana Path.

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