सुहागिनों का लोक पर्व गणगौर
Sadhana Path|April 2024
होली के दूसरे दिन से ही गणगौर का त्यौहार आरंभ हो जाता है जो पूरे सोलह दिन तक लगातार चलता रहता है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वती जी को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। सुहागिनें व्रत धारण करने से पहले रेणुका (मिट्टी) की गौरी की स्थापना करती हैं एवं उनका पूजन करती हैं।
सुधा रानी तैलंग
सुहागिनों का लोक पर्व गणगौर

अचल सुहाग, मनचाहा पति व अच्छे वर की मनोकामना के लिए गणगौर पूजन का पर्व चैत्रकृष्ण की प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक मनाया जाता है। सुहागिनों के साथ कुंवारी कन्याऐं भी अखंड सौभाग्य की कामना के साथ श्रद्धा व उत्साह से गणगौर व ईसर की पूजा करती है। गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है, गण का अर्थ है शिव और गौर का अर्थ है पार्वती। दांपत्य जीवन में पावन प्रेम के प्रतीक शिवपार्वती के आदर्शों को अपने जीवन चरित में उतारने के लिये गणगौर व्रत, पूजन किया जाता है।

गौर ईसर पूर्व जन्म में सती-महादेव थे। अहंकारी पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में शंकर को अपमानित किए जाने पर सती सहन नहीं कर सकीं और सती ने यज्ञ स्थल पर ही देवताओं व ऋषि-मुनियों के समक्ष ही योगाग्नि से स्वयं को दहन कर लिया। सती ने पर्वतराज हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया व कठोर तप करके पुनः पति के रूप में भगवान शंकर को चैत्र की तृतीया को पति गणगौर के दिन भगवान शंकर ने पार्वती को व पार्वती ने सभी सतियों को सौभाग्य का वरदान दिया था। इसीलिए ये पर्व आज भी परंपरागत रूप से मनाया जाता है। 

यूं तो गणगौर राजस्थान का लोक उत्सव है पर गणगौर का त्यौहार राजस्थान के अलावा मालवा, निमाड़, गुजरात के प्रायः समूचे देश में सुहागिनों व कुंवारी लड़कियां सुहाग पर्व के रूप में पूरी आस्था व श्रद्धा से मनाती हैं। मालवा निमाड़ में तो गणगौर एक लोक पर्व के रूप में मनाया जाता है। निमाड़ मध्य प्रदेष में चैत्र एकादशी से गणगौर माता की पावणी लाई जाती है। घर की सफाई की जाती है। घर के आंगन को मांडनों से सजाया जाता है। माता की मूठ रखी जाती है। बांस की टोकनी में जवारे बोये जाते हैं। नये कपड़े पहन कर सोलह श्रृंगार करके महिलायें गणगौर पूजन करती हैं। इस पूजन का समापन गणगौर तीज के दिन होता है।

Diese Geschichte stammt aus der April 2024-Ausgabe von Sadhana Path.

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