अचल सुहाग, मनचाहा पति व अच्छे वर की मनोकामना के लिए गणगौर पूजन का पर्व चैत्रकृष्ण की प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक मनाया जाता है। सुहागिनों के साथ कुंवारी कन्याऐं भी अखंड सौभाग्य की कामना के साथ श्रद्धा व उत्साह से गणगौर व ईसर की पूजा करती है। गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है, गण का अर्थ है शिव और गौर का अर्थ है पार्वती। दांपत्य जीवन में पावन प्रेम के प्रतीक शिवपार्वती के आदर्शों को अपने जीवन चरित में उतारने के लिये गणगौर व्रत, पूजन किया जाता है।
गौर ईसर पूर्व जन्म में सती-महादेव थे। अहंकारी पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में शंकर को अपमानित किए जाने पर सती सहन नहीं कर सकीं और सती ने यज्ञ स्थल पर ही देवताओं व ऋषि-मुनियों के समक्ष ही योगाग्नि से स्वयं को दहन कर लिया। सती ने पर्वतराज हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया व कठोर तप करके पुनः पति के रूप में भगवान शंकर को चैत्र की तृतीया को पति गणगौर के दिन भगवान शंकर ने पार्वती को व पार्वती ने सभी सतियों को सौभाग्य का वरदान दिया था। इसीलिए ये पर्व आज भी परंपरागत रूप से मनाया जाता है।
यूं तो गणगौर राजस्थान का लोक उत्सव है पर गणगौर का त्यौहार राजस्थान के अलावा मालवा, निमाड़, गुजरात के प्रायः समूचे देश में सुहागिनों व कुंवारी लड़कियां सुहाग पर्व के रूप में पूरी आस्था व श्रद्धा से मनाती हैं। मालवा निमाड़ में तो गणगौर एक लोक पर्व के रूप में मनाया जाता है। निमाड़ मध्य प्रदेष में चैत्र एकादशी से गणगौर माता की पावणी लाई जाती है। घर की सफाई की जाती है। घर के आंगन को मांडनों से सजाया जाता है। माता की मूठ रखी जाती है। बांस की टोकनी में जवारे बोये जाते हैं। नये कपड़े पहन कर सोलह श्रृंगार करके महिलायें गणगौर पूजन करती हैं। इस पूजन का समापन गणगौर तीज के दिन होता है।
Diese Geschichte stammt aus der April 2024-Ausgabe von Sadhana Path.
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तुलसी से दूर करें वास्तुदोष
हिन्दू धर्म में तुलसी का पौधा हर घर-आंगन की शोभा है। तुलसी सिर्फ हमारे घर की शोभा ही नहीं बल्कि शुभ फलदायी भी है। कैसे, जानें इस लेख से।
क्यों हुआ तुलसी का विवाह?
कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है, किंतु उत्तर भारत में इसका कुछ ज्यादा ही महत्त्व है। नवमी, दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना बड़ा ही शुभ माना जाता है।
बड़ी अनोखी है कार्तिक स्नान की महिमा
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बारह पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व सर्वाधिक है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसका नाम हैं सत्यः नानक
सिरवों के प्रथम गुरु थे नानक | अंधविश्वास एवं आडंबरों के विरोधी गुरुनानक का प्रकाश उत्सव अर्थात् उनका जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु नानक का मानना था कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। संपूर्ण विश्व उन्हें सांप्रदायिक एकता, शांति एवं सद्भाव के लिए स्मरण करता है।
सूर्योपासना एवं श्रद्धा के चार दिन
भगवान सूर्य को समर्पित है आस्था का महापर्व छठ । ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से सूर्य देवता मनोकामना पूर्ण करते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है, जिस कारण इस पर्व का नाम छठ पड़ा। जानें इस लेख से छठ पर्व की महत्ता।
एक समाज, एक निष्ठा एवं श्रद्धा की छटा का पर्व 'छठ'
छठ की दिनोंदिन बढ़ती आस्था और लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि कुछ तो विशेष है इस पर्व में जो सबको अपनी ओर खींच लेता है। पूजा के दौरान अपने लोकगीतों को गाते हुए, जमीन से जुड़ी परम्पराओं को निभाते हुए हर वर्ग भेद मिट जाता है। सबका एक साथ आकर बिना किसी भेदभाव के ईश्वर का ध्यान करना... यही तो भारतीय संस्कृति है, और इसीलिए छठ है भारतीय संस्कृति का प्रतीक।
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सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जाल में सिर्फ बड़े ही नहीं बच्चे भी फंसते जा रहे हैं, जिसका परिणाम यह है कि बच्चे धीरे-धीरे वर्चुअल दुनिया में ज़्यादा व्यस्त रहने की वजह से वास्तविक दुनिया से दूर होते जा रहे हैं।
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अच्छे खाने का शौकीन भला कौन नहीं होता है। खाना अगर स्वाद के साथ सेहतमंद भी हो तो बात ही क्या है। सवाल ये उठता है कि अपनी पसंदीदा खाद्य सामग्रियों का सेवन करके फिट कैसे रहा जाए?
लंबी सीटिंग से सेहत को खतरा
लगातार बैठना आज वजह बन रहा कई स्वास्थ्य समस्याओं की। इन्हें नज़र अंदाज करना खतरनाक हो सकता है। जानिए कुछ ऐसे ही परिणामों के बारे में-
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