किशोरों के जीवन में हस्तक्षेप की सीमारेखा अनिवार्य है
Sadhana Path|April 2024
यदि हम बच्चों पर अपनी पसंद थोप देंगे तो इसकी संभावना अधिक है कि वे अपने दोस्तों के बीच में उपहास के पात्र बन जाएं। इससे उनके व्यक्तित्व का विकास बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है जो हर तरह से उनकी उन्नति में बाधक होगा।
सीताराम गुप्ता
किशोरों के जीवन में हस्तक्षेप की सीमारेखा अनिवार्य है

सुबह-सुबह एक मित्र महोदय का फोन आया। उम्र में मुझसे काफी बड़े हैं। जीवन के पचहत्तर वसंत पूरे कर चुके हैं। पौत्र-पौत्रियों के बारे में बातें करने लगे। उनकी पढ़ाईलिखाई, प्राप्त अंक, करियर, खानपान, दिनचर्या, आदतों व उनके व्यवहार के बारे में काफी बातें कीं। बतलाया कि कई बार छुट्टियों में भी हमारे पास न आकर हॉस्टल में ही पड़े रहते हैं। बच्चों की और भी कई बातों से संतुष्ट नहीं थे। बात करते हुए बीचबीच में उत्तेजित तक हो जाते थे। अपने किशोर बच्चों अथवा पौत्र-पौत्रियों को लेकर माता-पिता अथवा घर के बुजुर्गों की चिंता स्वाभाविक है लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है। अपने बच्चों अथवा पौत्र-पौत्रियों के मामलों में कितनी चिंता की जाए अथवा उनके जीवन में कितना हस्तक्षेप किया जाए यदि हम इस सीमारेखा को समझकर उसके अनुसार व्यवहार करेंगे तो उनसे हमारे संबंध सदैव आत्मीय व अर्थपूर्ण बने रहेंगे अन्यथा हमेशा के लिए तनावपूर्ण हो जाएंगे। कारण स्पष्ट है और वो ये है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह बच्चा ही क्यों न हो अपने जीवन में दूसरों की बेजा दखलंदाजी पसंद नहीं करता।

Diese Geschichte stammt aus der April 2024-Ausgabe von Sadhana Path.

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