प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस एक पहाड़ी प्रपात को देख रहे थे। यह दो सौ फीट की ऊंचाई से गिरता है और इसका झाग मीलों दूर तक पहुंचता है। कोई भी प्राणी उसमें जीवित नहीं रह सकता। फिर भी कन्फ्यूशियस ने एक बूढ़े आदमी को अंदर जाते देखा। यह सोचकर कि बूढ़ा आदमी किसी परेशानी से पीड़ित है और इसलिए अपना जीवन समाप्त करना चाहता है, कन्फ्यूशियस ने एक शिष्य को उसे बचाने के लिए किनारे पर जाने के लिए कहा। बूढ़ा आदमी पानी में ग़ायब हुआ और फिर लगभग सौ क़दम दूर से निकला और लहराते बालों के साथ, किनारे पर गुनगुनाता हुआ जाने लगा।
कन्फ्यूशियस ने उसका पीछा किया और जब वह उसके पास पहुंचा तो उसने कहा, 'महोदय, कृपया मुझे बताएं, क्या पानी से निपटने का आपका कोई ख़ास तरीक़ा है?"
'नहीं' आदमी ने उत्तर दिया। 'मेरे पास कोई ख़ास तरीक़ा नहीं है। मैं भंवर की गति के साथ डूबता हूं, उसी गति के साथ बाहर आता हूं। मैं ख़ुद को पानी के अनुकूल बनाता हूं, न कि पानी को मेरे अनुकूल और इसलिए मैं इससे निपटने में सक्षम हूं।' यह कहानी चीनी प्रज्ञा का सार है। इस आदमी ने हर समस्या को सुलझाने का महामंत्र दे दिया। मंत्र यह है कि किसी भी समस्या को हल करना हो तो उससे दूर भागने के बजाय उसमें छलांग लगा लें। क्योंकि, समस्या का हल कहीं बाहर नहीं होता, समस्या के भीतर ही होता है। अधिकांश लोग समस्या को देखते ही उससे भाग जाते हैं, फिर किसी विशेषज्ञ को, जानकार को बुलाते हैं समस्या को सुलझाने के लिए। लेकिन यह तो देखें कि क्या वास्तव में समस्या होती है?
समस्या को हल करने के नियम
Diese Geschichte stammt aus der August 2024-Ausgabe von Aha Zindagi.
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