एक बार मैंने भोपाल के वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक चटर्जी को कहते सुना कि हिंदी में साढ़े सात लाख या उससे भी अधिक शब्द हैं, लेकिन हम प्रयोग महज़ कुछ हज़ार ही करते हैं। यह सुनकर हैरानी हुई कि इस लिहाज़ से तो अंग्रेजी या किसी भी यूरोपीय भाषा से अधिक शब्द हिंदी में हैं। इसके बावजूद ऐसा क्यों होता है कि कई नए-पुराने अंग्रेज़ी शब्दों के लिए हमें उचित शब्द नहीं मिलते? हमें अख़बारों, पत्रिकाओं, किताबों और संवाद अंग्रेजी शब्दों की भरमार मिलती है।
नई दुनिया की नई शब्दावली के साथ यह और भी कठिन होता जा रहा है। कई बार तो पढ़कर ऐसा लगता है कि लिपि देवनागरी है लेकिन पढ़ हम अंग्रेजी ही रहे हैं।
विदेशी खेल की देसी शब्दावली
इस संदर्भ में मुझे सबसे पहले क्रिकेट का आंखों देखा हाल सुनाने वाले सुशील दोशी याद आए। रेडियो पर उन्हें सुनते हुए लगता कि वे कितनी सहजता से धाराप्रवाह हिंदी में ऐसे खेल का हाल सुना रहे हैं, जिसकी तो पूरी शब्दावली ही अंग्रेज़ी में थी। ऐसा भी नहीं कि वे क्लिष्ट तत्सम शब्दों का प्रयोग करते, बल्कि गली-नुक्कड़ में बोली जाने वाली भाषा में ही तकनीकी बातें कर लेते। जैसे-
'शंका के गलियारे में टप्पा खाती गेंद। भाग्यशाली रहे बल्लेबाज़ | बल्ले का किनारा नहीं लगा। सुरक्षित।'
इसे कुछ हिंदी कमेंटेटर यूं कहते- 'कॉरीडोर ऑफ़ अनसरटेनटी में बॉल पिच हुई। भाग्यशाली थे बैट्समैन। बैट का एज नहीं लगा। सेफ़ है।'
देखा जाए तो हिंदी में कही गई बात उन्हें भी समझ आ सकती है जो खेल से कम परिचित हैं। चूंकि सुशील दोशी ऐसे शब्दों का प्रयोग नियमित करते थे, यह हमें और भी सहज लगने लगा। कई शब्द जनसत्ता के लिए प्रभाष जोशी भी गढ़े जो अख़बारों में धीरे-धीरे आम हो गए।
Diese Geschichte stammt aus der September 2024-Ausgabe von Aha Zindagi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent ? Anmelden
Diese Geschichte stammt aus der September 2024-Ausgabe von Aha Zindagi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent? Anmelden
अंतरिक्ष केंद्र सतीश धवन
श्रीहरिकोटा स्थित उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र का नाम जिनके नाम पर 'सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र' है, वे सही मायनों में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के केंद्र रहे हैं।
हरी-हरी धरती पर हर
वर्षा की विदाई वेला है। नदियों का कलकल निनाद गूंज रहा है, धरती ने हरीतिमा की चादर ओढ़ रखी है, प्रकृति का हर हिस्सा खिला-खिला, मुस्कराता-सा लग रहा है।
गजानन सुख कानन
भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी श्रीगणेश के आगमन की पुण्यमय तिथि है। देव अपना लोक छोड़ मर्त्य मानवों के निवास में उन्हें तारने आ बैठते हैं।
जब मंदिर में उतर आता है चांद
यायावर के सफ़र में तयशुदा गंतव्य तो उसका पसंदीदा होता ही है, राह के औचक पड़ाव भी कोई कम मोहक नहीं होते। बस, दरकार होती है एक खुले दिल और उत्सुक नज़र की। महाराष्ट्र के फलटण से खिद्रापुर के बीच की दूरी यात्रा की परिणति से पहले के छोटे-छोटे आनंद को संजोए हुए है इस बार की यायावरी।
भावनाओं के क़ैदी...
भावनाएं और तर्क हमारे व्यक्तित्व के दो अहम हिस्से हैं और दोनों ही ज़रूरी हैं। लेकिन कभी भावनाएं प्रबल हो जाती हैं तो तार्किक बुद्धि मौन हो जाती है। इसके चलते तनाव बेतहाशा बढ़ जाता है, आवेग में निर्णय ले लिए जाते हैं और फिर अक्सर पछताना ही पड़ता है। यही 'इमोशनली हाईजैक' होना है। जीवन का सुकून इससे उबरने की हमारी क्षमता पर निर्भर करता है।
मेरा वो मतलब नहीं था!
हमारे शब्द सामने वाले को चोट पहुंचा जाते हैं, फिर हम माफ़ी मांगते हुए सफाई देते हैं कि हमारा वह इरादा नहीं था। सवाल उठता है कि अगर इरादा नहीं था तो फिर वैसे शब्द मुंह से निकले कैसे?
...जहां चाह वहां हिंदी की राह
भाषा के मामले में असल चीजें हैं प्रवाह और प्रयोग...हिंदी शब्द समझने में सरल होंगे, अर्थ को ध्वनित करेंगे, और उनका नियमित प्रयोग होगा तो किसी भी क्षेत्र में अंग्रेज़ी शब्दों की घुसपैठ के लिए कोई बहाना ही नहीं बचेगा...
हिंदी के ज्ञान से सरल विज्ञान
पहले हमने दुनिया को विज्ञान का ज्ञान दिया और अब खुद एक विदेशी भाषा में विज्ञान पढ़ रहे हैं। इस बीच आख़िर हुआ क्या? विज्ञान आगे बढ़ गया और हिंदी पीछे रह गई या फिर हमने अपनी भाषा की क्षमता को जाने बग़ैर ही उसे अक्षम मान लिया?
फिल्म नगरिया की भाषा
कितनी अजीब बात है कि हिंदी फिल्म उद्योग की भाषा हिंदी नहीं है। हिंदी फिल्मों में शुद्ध हिंदी का मज़ाक़ बनाया जाता है। सेट पर बातचीत अंग्रेज़ी में होती है, पटकथा अंग्रेज़ी में लिखी जाती है और संवाद रोमन में। हिंदी फिल्मों से करोड़ों कमाने वाले सितारे हिंदी बोलने में हेठी देखते हैं। हालांकि इस घटाटोप के बीच अब आशा की कुछ किरणें चमकने लगी हैं...
हिंदी किताबों में हिंदी
कोई बोली, भाषा बनती है जब वह लिखी जाती है, उसमें साहित्य रचा जाता है और विविध विषयों पर किताबें छपती हैं। पुस्तकों में भाषा का सुघड़ रूप होता है। हिंदी भाषा की विडंबना है कि उसकी किताबों में अंग्रेज़ी शब्दों की आमद बढ़ती जा रही है। कुछ को यह ज़रूरी लगती है तो बहुतों को किरकिरी। सबके अपने तर्क हैं। 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर आमुख कथा का पहला लेख इस अहम मुद्दे पर पड़ताल कर रहा है कि हिंदी किताबों में हिंदी क्यों घटती जा रही है?