अदायगी के रंग अनंत
Aha Zindagi|October 2024
74 बरस के अनंत महादेवन काफ़ी पहले ही अभिनय, निर्देशन और पटकथा लेखन में एक पुख्ता पहचान बना चुके हैं। उन्होंने व्यावसायिक और कला, दोनों तरह के सिनेमा में कामयाबी पाई है जो बिरलों को ही नसीब होती है। बावजूद इसके वे कहते हैं कि अभी अपने सपनों का दस फ़ीसदी भी हासिल नहीं किया है तो इसलिए कि नाम की तरह उनके सपनों का विस्तार भी अपार है। जिस उम्र में लोग आराम के बारे में सोचते हैं, वे शिद्दत से ऐसा काम तलाश रहे हैं जो सौ बरस तक दर्शकों के दिलों में ज़िंदा रहे। इस बार बहुआयामी प्रखर प्रतिभा के धनी अनंत महादेवन बतौर अहा ! अतिथि सुना रहे हैं अपनी कहानी।
सुधा उपाध्याय
अदायगी के रंग अनंत

कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता है

डॉक्टर बनने के इच्छुक विज्ञान के विद्यार्थी ने विज्ञापन एजेंसी के रास्ते फिल्मों की दुनिया में प्रवेश किया। हर जगह, हर अनुभव से सीखने की यह वृत्ति अनंत में हमेशा से है।

मेरा जन्म 28 अगस्त, 1950 को त्रिशूर में हुआ। त्रिशूर को केरल की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। यह शहर साहित्य, कला और संस्कृति के रंगों से ओतप्रोत है। केरल में मेरी ज़िंदगी के आरंभिक वर्ष गुजरे। यह बहुत छोटी उम्र थी, लेकिन उस छोटे शहर की हरियाली, साहित्य, संस्कृति और कला की ख़ूबसूरती और ख़ासियतें मानो दिमाग़ में छपसी गईं। फिर पिताजी वहां से मुंबई आ गए तब दूसरी संस्कृति से परिचय हुआ। केरल के बड़े-से घर-आंगन, खेत-खलिहान को छोड़कर मुंबई के वडाला स्थित वन-बेडरूम-हॉल के घर में आना, शुरुआत में ऐसा लग रहा था कि एक पिंजरे में पहुंच गए हैं। लेकिन दिमाग़ में सिर्फ़ यह चलता था कि जहां हमारे माता-पिता ले आए हैं, वहीं ज़िंदगी है। उन्हीं के साथ चलना है। और उनका कहना मानना है। बहरहाल, त्रिशूर का समय मेरे लिए बहुत मायने रखता है, क्योंकि मैं मानता हूं कि मुझमें जो अनुशासन है, दुर्व्यसनों से दूर हूं, शाकाहारी हूं, इस सबकी पक्की बुनियाद वहीं की परवरिश में पड़ी थी।

विज्ञान के साथ मिलीं भाषाएं और कला

मुंबई आने के बाद पिताजी चाहते थे कि मेरी पढ़ाई सबसे अच्छे स्कूल में हो, इसलिए माटुंगा के डॉन बॉस्को हाईस्कूल में दाख़िला करवाया। इसे एक इतालवी फादर चलाते थे। माटुंगा तब शैक्षिक केंद्र था और अब भी है। ऐसी जगह पर बड़ा होना मायने रखता है। हमारे शिक्षक बहुत अनुशासनप्रिय थे। उन्होंने पढ़ाई के महत्व से अवगत कराया। मैंने अपनी जो जगह हासिल की है, वह उन्हीं की बदौलत है। शिक्षकों का शुक्रगुजार इसलिए भी हूं, क्योंकि उन्होंने भाषा को बहुत तवज्जो दी। आज अंग्रेज़ी में कुछ अभिव्यक्त कर पाता हूं तो इसका श्रेय उन्हीं को है।

Diese Geschichte stammt aus der October 2024-Ausgabe von Aha Zindagi.

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