बचपन में गाई प्रार्थना 'हे प्रभु आनंददाता...' को याद कीजिए। ईश्वर को हम आनंद देने वाला मानते हैं। जीवन में हमारी सबसे बड़ी तलाश आनंद ही है। आनंद तब आता है जब पांचों इंद्रियां- आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा सक्रिय हो जाती हैं और यह मुख्यतः होता है त्योहारों के समय घर और परिवेश की सुंदर सजावट, रंग, रोशनी आदि आंखों को सुकून देते हैं। त्योहारों से जुड़े लोकगीत, भजन, गीत-संगीत कानों के रास्ते मन में रस घोल देते हैं। पकवानों की ख़ुशबू नथुनों के मार्ग से प्रवेश कर दिल-दिमाग़ को महका देती है। मिठाइयां और अन्य पकवान जीभ ही नहीं आत्मा को भी तृप्त करते हैं। और सबसे बढ़कर, अपनों का सान्निध्य, उनका स्नेहिल स्पर्श सच्चे सुख की अनुभूति कराता है। इस सबके सम्मिलन से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसकी मिसाल और कहां!
त्योहार लोगों को एक साथ आने और जश्न मनाने का एक अनूठा अवसर प्रदान करते हैं, चाहे वह सांस्कृतिक विरासत हो, धार्मिक अवसर हो या बस जीवन का आनंद हो। अपनेपन की यह भावना अकेलेपन और अलगाव के एहसासों को परे कर देती है। इस दौरान, हम अक्सर दोस्तों, परिवार और यहां तक कि अजनबियों के साथ भी ख़ुशियां साझा करते हैं, सामाजिक बाधाओं को तोड़ते हैं और नए संबंध बनाते हैं। एकता की यह भावना, चाहे वह एक ही लय पर थिरकना और नाचना हो, एक ही गीत को साथ-साथ गाना गुनगुनाना हो, या पकवान, खानपान साझा करना हो, पारस्परिक प्रेम, विश्वास और सहयोग की भावनाओं को बढ़ावा देती है। इसका सुफल आनंद, सुकून और संतुष्टि के रूप में मिलता है।
सारे उत्सव मन के हैं...
Diese Geschichte stammt aus der October 2024-Ausgabe von Aha Zindagi.
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कथाएं चार, सबक़ अपार
कथाएं केवल मनोरंजन नहीं करतीं, वे ऐसी मूल्यवान सीखें भी देती हैं जो न सिर्फ़ मन, बल्कि पूरा जीवन बदल देने का माद्दा रखती हैं - बशर्ते उन सीखों को आत्मसात किया जाए!
मनोरम तिर्रेमनोरमा
अपने प्राकृतिक स्वरूप, ऋषि-मुनियों के आश्रम, सरोवर और सुप्रसिद्ध मेले को लेकर चर्चित गोंडा ज़िले के तीर्थस्थल तिर्रेमनोरमा की बात ही निराली है।
चाकरी नहीं उत्तम है खेती...
राजेंद्र सिंह के घर पर किसी ने खेती नहीं की। लेकिन रेलवे की नौकरी करते हुए ऐसी धुन लगी कि असरावद बुजुर्ग में हर कोई उन्हें रेलवे वाले वीरजी, जैविक खेती वाले वीरजी, सोलर वाले वीरजी के नाम से जानता है। उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।
उसी से ग़म उसी से दम
जीवन में हमारे साथ क्या होता है उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि हम उस पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं। इसी पर निर्भर करता है कि हमें ग़म मिलेगा या दम। यह बात जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना पर लागू होती है।
एक कप ज़िंदगी के नाम
सिडनी का 'द गैप' नामक इलाक़ा सुसाइड पॉइंट के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस स्थान से जुड़ी एक कहानी ऐसी है, जिसने कई जिंदगियां बचाईं। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जिसने अपनी साधारण-सी एक पहल से अंधेरे में डूबे हुए लोगों को एक नई उम्मीद की किरण से रूबरू कराया।
कौन हो तुम सप्तपर्णी?
प्रकृति की एक अनोखी देन है सप्तपर्णी। इसके सात पर्ण मानो किसी अदृश्य शक्ति के सात स्वरूपों का प्रतीक हैं और एक पुष्प के साथ मिलकर अष्टदल कमल की भांति हो जाते हैं। हर रात खिलने वाले इसके छोटे-छोटे फूल और उनकी सुगंध किसी सुवासित मधुर गीत तरह मन को आनंद विभोर कर देती है। सप्तपर्णी का वृक्ष न केवल प्रकृति के निकट लाता है, बल्कि उसके रहस्यमय सौंदर्य की अनुभूति भी कराता है।
धम्मक-धम्मक आत्ता हाथी...
बाल गीतों में दादा कहकर संबोधित किया जाने वाला हाथी सचमुच इतना शक्तिशाली होता है कि बाघ और बब्बर शेर तक उससे घबराते हैं। बावजूद इसके यह किसी पर भी यूं ही आक्रमण नहीं कर देता, बल्कि अपनी देहभाषा के ज़रिए उसे दूर रहने की चेतावनी देता है। जानिए, संस्कृत में हस्ती कहलाने वाले इस अलबेले पशु की अनूठी हस्ती के बारे में।
यह विदा करने का महीना है...
साल समाप्त होने को है, किंतु उसकी स्मृतियां संचित हो गई हैं। अवचेतन में ऐसे न जाने कितने वर्ष पड़े हुए हैं। विगत के इस बोझ तले वर्तमान में जीवन रह ही नहीं गया है। वर्ष की विदाई के साथ अब वक़्त उस बोझ को अलविदा कह देने का है।
सर्दी में क्यों तपे धरतीं?
सर्दियों में हमें गुनगुनी गर्माहट की ज़रूरत तो होती है, परंतु इसके लिए कृत्रिम साधनों के प्रयोग के चलते धरती का ताप भी बढ़ने लगता है। यह अंतत: इंसानों और पेड़-पौधों सहित सभी जीवों के लिए घातक है। अब विकल्प हमें चुनना है: जीवन ज़्यादा ज़रूरी है या फ़ैशन और बटन दबाते ही मिलने वाली सुविधाएं?
उज्ज्वल निर्मल रतन
रतन टाटा देशवासियों के लिए क्या थे इसकी एक झलक मिली सोशल मीडिया पर, जब अक्टूबर में उनके निधन के बाद हर ख़ास और आम उन्हें बराबर आत्मीयता से याद कर रहा था। रतन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और महज़ दो माह पहले ही उनके बारे में काफ़ी कुछ लिखा भी गया। बावजूद इसके बहुत कुछ लिखा जाना रह गया, और जो लिखा गया वह भी बार-बार पढ़ने योग्य है। इसलिए उनके जयंती माह में पढ़िए उनकी ज़िंदगी की प्रेरक किताब। रतन टाटा के समूचे जीवन को चार मूल्यवान शब्दों की कहानी में पिरो सकते हैं: परिवार, पुरुषार्थ, प्यार और प्रेरणा। उन्हें नमन करते हुए, आइए, उनकी बड़ी-सी ज़िंदगी को इस छोटी-सी किताब में गुनते हैं।