... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई
Aha Zindagi|November 2024
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....
अंजनी साहा
... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई

दीपकों की लौ पत्थर की पुरानी दीवारों पर नृत्य कर रही थी, उनका कोमल प्रकाश शीतल फ़र्श पर पद्मासन में बैठे पांच कलाकारों के चेहरों पर खेल रहा था। कमरे में गेंदे के फूलों की मीठी सुगंध और प्राकृतिक रंगों की महक तैर रही थी। संकरी खिड़कियों से प्रभात की पहली किरणें झांक रही थीं। उस्ताद गोविंद सिंह विशाल कपड़े पर झुके हुए थे। उनके अनुभवी हाथ नीले रंग से कृष्ण के मोरमुकुट को सजा रहे थे। उनके अंगरखे का गहरा लाल रंग धोती की सफ़ेदी से विपरीत था, दोनों वस्त्र वर्षों की कलात्मक साधना के धब्बों से रंगे थे। उनके दाहिनी ओर युवा लक्ष्मण कमल के फूलों की जटिल किनार की बनावट पर काम कर रहा था, हर पंखुड़ी को अद्भुत सटीकता से साकार कर रहा था। उसकी पलक जितनी महीन कूची हर पत्ती की नस को उकेर रही थी। पीसी हुई मैकाइट से तैयार किया गया मरकत हरा रंग जैसे जीवंत हो उठा था। कार्यशाला की दीवारें अपनी कहानियां कह रही थींपूर्ण पिछवाई चित्र दिव्यलोक की खिड़कियों की तरह टंगे थे। एक विशाल चित्र में कृष्ण गोवर्धन पर्वत को उठाए हुए थे, पर्वत को मिट्टी के भूरे और स्लेटी रंगों से दर्शाया गया था, जिसके नीचे बारीकी से चित्रित सैकड़ों ग्रामीण शरण ले रहे थे। दूसरे में कृष्ण वृंदावन के दिव्य उद्यान में गोपियों से घिरे थे, जिनके भक्तिभाव को इतनी कोमलता से उभारा गया था कि चित्र उनके प्रेम से सांस लेता प्रतीत होता था।

कोने में बुजुर्ग राघव पत्थर के खरल में रंग पीस रहे थे। उनकी लयबद्ध गति स्वयं में एक ध्यान थी। सिंदूर का गहरा लाल, हरताल का चमकीला पीला, और शंख से निकला शुद्ध श्वेत रंग दिव्य छवियों में रूपांतरित होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके झुर्रीदार हाथ पूर्ण आत्मविश्वास से चल रहे थे, मानो उन्हें पता हो कि हर रंग को किस सटीक बारीकी तक पीसना है।

चंपा और चंपेली नामक दो बहनें कृष्ण की दिव्य गायों के दृश्य पर साथ-साथ काम कर रही थीं। उनकी कूचियां अनजाने में एक लय में चल रही थीं- गायों के शरीर के कोमल भूरे रंग, उनके स्वर्णिम आभूषणों की चमक, हरे-भरे चरागाह के रंग को उकेरते हुए उनकी हाथी दांत की चूड़ियों की धीमी आवाज़ें कार्यशाला के मधुर सृजन संगीत में घुल-मिल रही थीं।

Diese Geschichte stammt aus der November 2024-Ausgabe von Aha Zindagi.

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