मेहमान बैठे हैं, लेकिन बच्चा वहां जाने के लिए तैयार नहीं है। मेडिकल स्टोर से दवा लेकर आनी है, लेकिन 14 साल की बेटी जाने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वह किसी बाहरी व्यक्ति से बात करने से बचती है। बच्चों की ये आदतें सिर्फ आदतें नहीं हैं। ये एक खास तरह का डर है, जिसे 'सोशल फियर' कहते हैं। बच्चों में डर का ये सिर्फ एक उदाहरण भर है। जन्म से किशोरावस्था तक आते-आते बच्चों में कई तरह के डर घर कर जाते हैं। ये उनके व्यक्तित्व पर गलत असर डालते हैं, लेकिन माता-पिता इन्हें उनकी खराब आदत ही मानते हैं। अकसर इसके लिए बच्चों को डांट भी पड़ जाती है। पर, समय रहते बच्चों की पर्सनैलिटी का हिस्सा बनने वाले इन डरों को पहचान लिया जाना चाहिए ताकि बच्चे अपना जीवन खुलकर बिता सकें।
डर कब लगेगा और कैसा होगा, इसका निर्धारण बच्चे की उम्र के आधार पर होता है। बच्चे की जैसी उम्र होती है, उसको उसी तरह के डर का सामना करना पड़ता है। आइए इन डरों के बारे में जानें ताकि उस खास उम्र में आप अपने बच्चे का अच्छी तरह से ध्यान रख पाएं:
अजनबियों से डर
इस डर की शुरुआत जन्म से 9 महीने की उम्र में होती है। ध्यान दीजिएगा, इस उम्र में ज्यादातर बच्चे दूसरों की गोद में जाने से बचते हैं। इसकी वजह अजनबियों से डर यानी स्ट्रेंजर एंग्जाइटी है।
बिछुड़ने का डर
Diese Geschichte stammt aus der January 07, 2023-Ausgabe von Anokhi.
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