हमने तो चार-चार को पाल दिया, यहां एक बच्चे को पालना मुश्किल है? अकसर घर में सास और र दूसरी औरतें नई पीढ़ी की मां से कह देती हैं। समय के गुजरते पहियों के साथ आज हम उस दौर में हैं, जहां बच्चे का सही पालन-पोषण किसी जंग से कम नहीं रह गया है। पहले जहां बच्चे हाथोहाथ बड़े हो जाते थे, वहीं आज मां के गर्भवती होने के साथ ही उसकी परवरिश की प्लानिंग शुरू हो जाती है। नए जमाने की परवरिश में आज माता-पिता के सामने स्क्रीन, इंटरनेट, समय की कमी सरीखी ढेरों दुष्वारियां हैं। परिणामस्वरूप, समस्याएं दबे पांव कब जिंदगी में दखल देने चली आती हैं, पता ही नहीं चलता। नए जमाने की परवरिश के लिए आपको बच्चों को संवारने के लिए खुद को नए तरीके से तैयार करना होगा। दस्तक दे रही समस्याओं को समय रहते भांपना होगा, साथ ही ये समस्याएं आपके परिवार में पैठ न बना पाए, इसके लिए सटीक कदम भी उठाने की भरपूर कोशिश करनी होगी।
स्क्रीन टाइम बढ़ा रही है परेशानी
आज हर घर की सबसे बड़ी समस्या है, बढ़ा हुआ स्क्रीन टाइम। यकीनन स्क्रीन आज की जरूरत है, पर वह हमारी आदत में शामिल हो चुकी है। आपको जानकर हैरानी होगी कि खुशहाल लोग दुखी लोगों से कम स्क्रीन देखते हैं। कम से कम 4 हजार टीनएजर्स पर किए गए अध्ययन में तो यही बात साबित हुई है। अध्ययन में यह पाया गया है कि जो ज्यादा स्क्रीन देखते हैं, उनके अवसाद में जाने की आशंका अधिक होती है। आपको सिर्फ बच्चे का ही स्क्रीन टाइम कम नहीं करना होगा, बल्कि खुद के स्क्रीन टाइम पर भी नकेल कसनी होगी। जानकारों की मानें तो आज भारत में माता-पिता के स्क्रीन टाइम बढ़ने के कारण सत्तर फीसदी बच्चे अपने मन की बात अपने माता-पिता से साझा नहीं कर पाते। उनके लिए रोल मॉडल बनिए और सबसे पहले उनके सामने खुद का स्क्रीन टाइम कम कीजिए। फिर उनके लिए प्रयास कीजिए।
सफलता की दौड़ भी है समस्या
Diese Geschichte stammt aus der December 23, 2023-Ausgabe von Anokhi.
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