
बरेली के झुमके वाला ट्रेंड अब बीते जमाने की बात हो गई है क्योंकि अब आ गया है, इयर कफ और क्रॉलर का ट्रेंड। हो सकता है कि आपको ये नाम अटपटे लग रहे हों, लेकिन इस मामले में ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। असल में झुमके और चांदबाली की ही तरह ही इयर कफ और क्रॉलर भी कानों में पहने जाने वाले आभूषण हैं, जो अपने खास अंदाज और स्टाइल की वजह से हर सेलिब्रिटी और फैशन दिवा की पहली पसंद बन चुके हैं। जीजी हदीद और रिहाना से लेकर सोनम कपूर और दीपिका पादुकोण तक तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सितारे ज्वेलरी के इस अनूठे स्टाइल को अपना रहे हैं। अगर आप भी अपने पुराने पार्टी लुक से बोर हो चुकी हैं और कुछ अलग हट कर पहनने की सोच रही हैं, तो इयर कफ या क्रॉलर को आजमाएं। इस ज्वेलरी की सबसे बड़ी खास बात यह है कि यह स्टाइल देसी पारंपरिक पोशाकों और वेस्टर्न ड्रेसेज दोनों के साथ समान रूप से फबता है।
जुदा है अंदाज
Diese Geschichte stammt aus der December 30, 2023-Ausgabe von Anokhi.
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हेयर स्ट्रेटनर का नियमित इस्तेमाल करेगा नुकसान
हम सबके पास ढेरों सवाल होते हैं, बस नहीं होता जवाब पाने का विश्वसनीय स्रोत। इस कॉलम के जरिये हम एक्सपर्ट की मदद से आपके ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे। इस बार सौंदर्य विशेषज्ञ देंगी आपके सवालों के जवाब। हमारी एक्सपर्ट हैं,

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गर्भनिरोधक गोलियां क्या वाकई हैं नुकसानदेह?
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कपड़ों से झलकेगी आपकी ताकत
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संघर्ष-सफलता का जश्न
महिला अधिकारों की बातों को हम सिर्फ एक दिन में सीमित करके नहीं रख सकते। पर, हां इस एक दिन यानी 08 मार्च को हम महिलाओं के संघर्ष और उनकी सफलता जश्न थोड़ा और ज्यादा जरूर मना सकते हैं। 1909 में पहली दफा महिला दिवस मनाया गया था। पिछले 116 सालों में हमने एक लंबा सफर तय किया है। पर, इस बात में कोई दोराय नहीं कि बराबरी और बेहतरी की राह अभी काफी लंबी है। दुनिया भर की प्रसिद्ध महिलाओं द्वारा महिला अधिकार और बराबरी के बारे में कही गई ये बातें अपने अधिकार और भविष्य को लेकर आपको जोश से भर देगीः

एक दिन नहीं सवाल पूरी जिंदगी का है
महिला दिवस के बारे में जितनी बातें होती हैं, संकल्प लिए जाते हैं, वो सिर्फ खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए। इस दिन को हम सबको हल्के में लेने से बचना चाहिए, क्योंकि यह हम सबकी जिंदगी का सवाल है। क्यों हमें महिला दिवस को गंभीरता से लेना चाहिए, बता रही हैं

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बाल मन चंचल होता है, जो हर वक्त कुछ नया मांगता रहता है। कम मिले तो वह लालसा में रहता है और ज्यादा मिले तो जिद और क्रोध से भर सकता है। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी होती है कि बच्चों की मांग और उसकी पूर्ति के बीच सटीक तालमेल बैठाकर रखा जाए। कैसे साधें यह संतुलन, बता रही हैं

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आप घर-बाहर, ऑफिस... हर जगह अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाती हैं, फिर आर्थिक मामलों में निर्णय लेते वक्त हाथ पीछे क्यों खींच लेती हैं? कैसे घर के आर्थिक मामलों की कमान महिलाएं अपने हाथों में ले सकती हैं, बता रही हैं

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