एक मार्केटिंग फर्म के मार्केटिंग डिपार्टमैंट में काम कर रही महिमा शुरू में अपने काम को ले कर बहुत उत्साही थी, लेकिन साल पूरा होतेहोते उसे अपने काम से ऊब और थकान सी होने लगी. पैसे उसे जरूर अच्छे मिल रहे थे लेकिन टूरिंग जौब और ज्यादा देर तक काम करने से उस की सेहत पर भी खराब असर पड़ रहा था. साथ ही, अपने आसपास का माहौल और वहां काम करने वाले लोग भी उसे सूट नहीं कर रहे थे.
लेकिन घर की माली हालत ठीक न होने के कारण वह नौकरी छोड़ कर दूसरे विकल्प तलाश करने का जोखिम भी नहीं उठा सकती थी. पता नहीं दूसरी नौकरी मिले न मिले, मिले भी तो वहां का काम भी उस के मनमाफिक हो या नहीं. लिहाजा, मन मार कर वह अपनी नौकरी करती रही और धीरेधीरे डिप्रेशन में आ गई.
दूसरी तरफ कृतिका एक मल्टीनैशनल कंपनी में कंप्यूटर औपरेटर थी. कुछ समय बाद उसे वह काम बोरिंग लगने लगा, फिर उस ने इनफौर्मेशन टैक्नोलौजी में अपना कैरियर बनाना चाहा.
जब मन में ठान लिया तो पहले उस ने अपने बचे समय में एक अच्छे संस्थान से संबंधित पढ़ाई की. इनफौर्मेशन टैक्नोलौजी में पूरी जानकारी हासिल की और सालभर बाद ही उसे उस क्षेत्र में कामयाबी भी मिल गई.
आईटी में जौब मिलने के बाद ही उस ने अपनी पहली नौकरी छोड़ दी. अब वह अपने मनमुताबिक कैरियर से बहुत संतुष्ट है.
मशहूर विद्वान विंस्टन चर्चिल ने कहा था, "हर संस्थान अथवा व्यक्ति को समय के साथ बदलते रहना चाहिए. अगर ऐसा नहीं है तो धीरेधीरे विकास रुक जाएगा. वास्तव में परिवर्तन प्रकृति का नियम है और परिवर्तन से ही विकास संभव है. जो समय और परिस्थिति के अनुसार अपने आप को बदलते रहते हैं, वही सफल होते हैं.
हद से ज्यादा जौब सैटिस्फैक्शन के नुकसान
Diese Geschichte stammt aus der April 2023-Ausgabe von Mukta.
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