पांच दशक बाद असम के विधानसभा एवं लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन होने जा रहा है। भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने सन 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर असम विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की है। आयोग ने सन 2023 के 1 जनवरी से क्षेत्र परिसीमन की कवायद पूरी होने तक राज्य में नई प्रशासनिक इकाईयों के गठन पर प्रतिबंध भी लगा दिया है। मालूम हो कि असम में अंतिम क्षेत्र परिसीमन सन 1971 के जनगणना आंकड़ों के आधार पर क्षेत्र परिसीमन आयोग ने सन 1976 में किया था। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 8ए के अनुसार असम की विधानसभा और संसदीय सीटों को फिर से तैयार करने का कदम केन्द्रीय कानून मंत्रालय के एक अनुरोध के बाद शुरू किया गया है। परिसीमन एक विधायी निकाय वाले देश या राज्य में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा या सीमाओं को तय करने की प्रक्रिया है।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्तद्वय अनूप चंद्र पांडे और अरुण गोयल के नेतृत्व वाले आयोग ने असम के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को निर्देश दिया है कि वे इस मामले को राज्य सरकार के साथ उठाएं ताकि 1 जनवरी, 2023 से राज्य में परिसीमन की कवायद पूरी होने तक नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सके। जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 170 के तहत अनिवार्य है कि जनगणना के आंकड़े (2001) का उपयोग राज्य में संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के पुनः समायोजन के उद्देश्य से किया जाएगा। चुनाव आयोग ने एक बयान में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अनुसार प्रदान किया जाएगा। निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के उद्देश्य से आयोग अपने स्वयं के दिशा-निर्देशों और कार्यप्रणाली को डिजाइन और अंतिम रूप देगा।
Diese Geschichte stammt aus der January 2023-Ausgabe von DASTAKTIMES.
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जन-गण-मन का भाग्य विधाता है संविधान
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संकट में पाकिस्तानी शिया
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कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।
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पीके अपनी पार्टी की रणनीति में हुए फेल
पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।