केबीसी के पहले शो में आमिर खान के अलावा कारगिल युद्ध के योद्धा मेजर डी. पी. सिंह और सेना पदक पाने वाली पहली महिला अफसर कर्नल मिताली मधुमिता भी आई थीं. हुआ यूं कि कर्नल मिताली मधुमिता के शौर्य पर वंदे मातरम् के नारे लगे और सभी लोगों ने हाथ उठाकर वंदे मातरम् कहा. खुद अमिताभ बच्चन ने वंदे मातरम् कहते हुए कई बार हाथ उठाया, लेकिन आमिर खान हाथ लटकाए रहे. वंदे मातरम् भी नहीं बोला. सिर्फ एक बार 'मातरम्' कहा और वो भी हंसते हुए .
बात सिर्फ यही नहीं थी. सेना के सम्मान में सबने खड़े होकर सैल्यूट किया. अमिताभ बच्चन, मेजर डीपी सिंह समेत सभी लोग हाथ को माथे सटाकर सैल्यूट की मुद्रा में थे, लेकिन आमिर खान का हाथ ऊपर की तरफ उठा ही नहीं. यूं ही वो ये सब देखते रहे तो इसे हम क्या मानें, आमिर के मन में देश की सेना के प्रति सम्मान नहीं है या फिर वो लापरवाह हैं या फिर वो कट्टर मुसलमान हैं, जो मानते हैं कि वंदे मातरम् कहने और देश को सैल्यूट करने से उनका इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा. यहां मैं साफ कर दूं कि आमिर खान ने जो हरकत की, वो कानून के खिलाफ नहीं है. वंदे मातरम् आप किसी से जबरन नहीं कहलवा सकते और न ही सैल्यूट न करके उन्होंने कोई कानून तोड़ा है, लेकिन इमोशन भी तो कोई चीज होती है.
खास तौर पर आमिर के लिए, क्योंकि आमिर अभिनेता हैं और फिल्मों में इमोशन ही सबसे ज्यादा बेचा जाता है. फिल्म पीके ने लाख विरोध के बावजूद अगर करोड़ों की कमाई की तो उसके पीछे वजह ये है कि कई बार फिल्म ने भावनाओं को छुआ. कभी भावनाओं को गुदगुदी हुई तो हंसी छूटी तो कभी फिल्म देखते हुए आंख भी नम हुई. आमिर तो वैसे भी भावनाओं के माहिर खिलाड़ी हैं, फिर उन्होंने देशवासियों की भावनाओं से खिलवाड़ क्यों किया..? उनसे ये चूक कैसे हुई..? ये उनकी चूक है या फिर लापरवाही या फिर जानबूझकर की गई हरकत.. फैसला आमिर को करना है.
Diese Geschichte stammt aus der August 16, 2022-Ausgabe von Gambhir Samachar.
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