जिसमें कहा गया है कि ‘पेगासस स्पायवेयर को खोजने के लिए 29 मोबाइल फोन्स की जांच की गई थी. लेकिन, इन फोन्स में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया गया हो. हालांकि, 5 फोन्स में कोई मालवेयर पाया गया है. लेकिन, ये पेगासस स्पायवेयर नहीं है.' पैनल ने ये भी कहा है कि 'केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कमेटी का सहयोग नहीं किया.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत में सियासी दलों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जिस पेगासस जासूसी कांड का हौव्वा खड़ा किया था. वह पेगासस स्पायवेयर सुप्रीम कोर्ट के पैनल की रिपोर्ट में भी कहीं नजर नहीं आया है.
बीते साल जुलाई में अमेरिकी मीडिया संस्थान वॉशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट के साथ दावा किया था कि दुनियाभर में 50,000 लोगों के फोन में पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया जा रहा है. जिनमें पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, देशों की सरकार के मंत्री और विपक्षी दलों के नेताओं के नाम थे. अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ये भी दावा किया गया कि भारत में 300 से फोन नंबरों पर पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया गया है. जिनमें दो केंद्रीय मंत्री, 40 से ज्यादा पत्रकार, 3 विपक्षी नेता, एक्टिविस्ट्स और एक जज भी शामिल थे. मीडिया वेबसाइट 'द वायर' ने दावा किया कि जिन लोगों की पेगासस स्पायवेयर से जासूसी का अंदेशा है, उस लिस्ट में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद पटेल के मोबाइल नंबर शामिल थे. इसके इतर मोदी सरकार के खिलाफ लिखने वाले कई पत्रकारों के नाम भी इस लिस्ट में थे. हालांकि, इन दावों को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नकार दिया था. आईटी मंत्रालय ने इसके जवाब में कहा था कि पेगासस स्पायवेयर के जरिये कोई भी अवैध निगरानी नहीं की जा रही है.
कोरोना से हुई मौतों पर बहस की जगह पेगासस में बर्बाद हुआ मानसून सत्र
Diese Geschichte stammt aus der September 01, 2022-Ausgabe von Gambhir Samachar.
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