बासवराज बोम्मई आम तौर पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में बिना किसी पूर्व तैयारी के धुआंधार बोलते हैं. उनके भीतर के इंजीनियर की तकनीकी विवरणों पर विशेष नजर होती है. मसलन, पिछले हफ्ते बेंगलूरू में कर्नाटक पावर कॉर्पोरेशन की वर्षगांठ पर आयोजित समारोह में, उन्होंने कुछ हद तक विस्तार से याद किया कि चार दशक पहले काली नदी पर राज्य के सबसे ऊंचे बांध की नींव रखने का काम कितनी मुश्किलों से भरा था. तब इंजीनियरिंग के छात्र के नाते बोम्मई ने बांध का निर्माण कार्य करीब से देखा था. फिर तुरंत ही उन्होंने चार दशक पुरानी बात को बड़ी कुशलता से वर्तमान संदर्भों से जोड़ दिया, जिस पर दर्शकों ने खूब ठहाके लगाए. उन्होंने पावर (बिजली), पावर ग्रिड और पावर डिस्ट्रिब्यूशन ( बिजली वितरण) जैसे विषयों पर चुटकी लेने में विशेष दिलचस्पी दिखाई क्योंकि कुछ हद तक इनका सरोकार पॉलिटिकल पावर से भी था. कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने कहा, "पॉलिटिकल पावर भी पैदा होती है... यह केवल कुछ जगहों पर पैदा होती है, फिर इसे वितरित किया जाता है, इसे जमा करके नहीं रखा जा सकता... पॉलिटिकल गुडविल (राजनैतिक सद्भावना) को इकठ्ठा करके नहीं रखा जा सकता, इसे बार-बार अर्जित करने की जरूरत पड़ती है."
चुनावी साल में, 'पावर मैनेजमेंट' या सत्ता का प्रबंधन निश्चित रूप से बोम्मई के लिए भी एक कड़ी चुनौती है. 62 वर्षीय मुख्यमंत्री ने 28 जुलाई को कुर्सी पर एक वर्ष पूरा किया और उनके सामने यह तय करने की बड़ी चुनौती है कि तमाम राजनैतिक उठापटक के बावजूद, कर्नाटक में भाजपा के लिए सद्भावना (गुडविल) की आपूर्ति में कोई कमी न आने पाए. उनकी इस चिंता के पीछे कारण, प्रदेश का राजनैतिक इतिहास है. 1980 के दशक के मध्य से, कर्नाटक में किसी सत्तारूढ़ दल की केवल तीन बार वापसी हुई है, जिसमें केवल एक बार उसने अकेले अपने दम पर वापसी की है जबकि दो बार गठबंधन करके सत्ता में वापसी हो पाई है. बोम्मई जिस सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं उसे भाजपा ने विधानसभा चुनाव के एक साल बाद, 2019 में दलबदल कराकर कांग्रेसजनता दल (सेक्युलर) की गठबंधन सरकार को गिराकर हासिल किया था.
Diese Geschichte stammt aus der August 10, 2022-Ausgabe von India Today Hindi.
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