मॉनसून भले ही कोताही बरत रहा हो, पर देश भर में मुफ्त रेवड़ियों की अब भी झड़ी लगी है. नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के गढ़ गुजरात में पैठ बनाने की कोशिश करते हुए आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल मतदाताओं को रिझाने के लिए तरकश का हर तीर छोड़ रहे हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री उसी सांचे का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसे उन्होंने पहले राष्ट्रीय राजधानी और अभी हाल में पंजाब को भारी बहुमत के साथ फतह करने के लिए मुकम्मल ढंग से आजमाया था. गुजरात के मतदाताओं से उन्होंने जिन उदार खैरातों का वादा किया, उनमें महीने में 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली, 18 साल से ऊपर की उम्र की सभी महिलाओं को 1,000 रुपए मासिक भत्ता, हरेक नौजवान को नौकरी की गारंटी और नौकरी मिलने तक 3,000 रुपए महीना बेरोजगारी भत्ता शामिल हैं.
केजरीवाल अकेले नहीं हैं जिन्होंने ऐसी चीजों की निर्लज्ज घोषणाएं की हैं जिन्हें वे कल्याणकारी उपाय कहते हैं, पर जिन्हें प्रधानमंत्री पिछले कुछ वक्त से रेवड़ी या मुफ्तखोरी की संस्कृति कहकर उसकी भर्त्सना करते आ रहे हैं. मसलन, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी को इस मामले में शायद ही कोई मात दे सकता है, जिन्होंने ऐसी घोषणाओं के बूते 2019 में सत्ता में आने के बाद कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं. इसीलिए बच्चों को स्कूल भेजने के लिए माता-पिता को प्रोत्साहित करने की गरज से छात्र की मां को 15,000 रुपए की वित्तीय सहायता मिलती है, किसानों को मुफ्त या रियायती दरों पर बिजली या नकद हस्तांतरण मिलता है और हरेक किसान को 7,500 रुपए की सालाना वित्तीय सहायता मिलती है, अपनी टैक्सी और ऑटो चलाने वाले ड्राइवरों को 24,000 रुपए और हथकरघे के मालिक हर बुनकर परिवार को 10,000 रुपए मिलते हैं. इन योजनाओं की दरियादिली की कीमत राज्य को 27,451 करोड़ रुपए से चुकानी पड़ती है, जो उसकी जीएसडीपी (सकल से राज्य घरेलू उत्पाद) का 2.1 फीसद है और जिससे राज्य की आर्थिक वृद्धि काफी धीमी पड़ जाएगी.
Diese Geschichte stammt aus der September 07, 2022-Ausgabe von India Today Hindi.
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