मानव इतिहास के छोटे-से अंतराल में असंख्य संस्कृतियों और सभ्यताओं की जननी विशाल नदियां कभी अकेले नहीं बहा करतीं. उपनदियों के बिना उनका वजूद कुछ हल्का पड़ जाता है. तमाम तर्कों के बीच विद्वानों ने एक बात पर हमेशा सहमति दी है और प्रकृति ने भी इस तथ्य को किसी महान सत्य की तरह हमेशा चरितार्थ किया है. ठीक उसी तरह मानव इतिहास कभी एक धारा तक सीमित नहीं रह सकता. हर कहानी वर्तमान की होने के साथ-साथ अतीत से भी जुड़ी हुई होती है. ठीक हमारे आस-पास हो रहे घटनाओं की तरह. जो आज हो रहा है, वह पहले भी हुआ था. महान जर्मन दार्शनिक जॉर्ज हेगेल ने कहा था, "इतिहास से हम केवल एक चीज सीखते हैं कि हम इतिहास से कुछ नहीं सीखते."
उसी इतिहास का एक महत्वपूर्ण पात्र है देश की राजधानी, जहां निरंतर बरसात के बावजूद इतवार की यह सुबह कुछ तप रही है. गाहे-बगाहे कुछ विचार अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं. जितनी धाराएं हैं, उतनी विद्वता मौका है रजा फाउंडेशन की ओर से 9 अक्तूबर को आयोजित एक कार्यक्रम का. भारतीय सभ्यता और उसके पृथक इतिहास पर आधारित इस कार्यक्रम में समकालीन बुद्धिजीवी भारत की बारह हजार वर्षों की सभ्यता और उसके इतिहास की विभिन्न धाराओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं. 12000 इयर्स ऑफ इंडिया: रिपोर्ट ऑन द सिविलिजेशन ऐंड हिस्टरीज ऑफ इंडिया सिन्स हॉलॉसीन नाम की इस रिपोर्ट को प्रो. जी. एन. देवी, टोनी जोसफ और रवि कोरिसेट्टर संपादित कर रहे हैं.
इस रिपोर्ट की प्रस्तावना के मुताबिक, समाज और राष्ट्र अपने अनुसार अवधारणाओं को विकसित करते रहते हैं. मौजूदा समय की भौतिक, सांस्कृतिक और वैचारिक आवश्यकताओं के आधार पर ही उनका गठन सुनिश्चित किया जाता है और इसी बहाने सामने आते हैं निरंतर बदलते अतीत. समाज, उसका साहित्य और इतिहास हमेशा पुनर्गठन की प्रक्रिया में होता है. अतीत के किसी भी संस्करण को पूर्ण प्रामाणिकता की कसौटी पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. उसकी ज्ञात अनिश्चितताओं का भार कभी कम नहीं हो सकता. यहीं पर इतिहास की स्थापित वैज्ञानिक परंपराएं अनिवार्य बन जाती हैं क्योंकि उनके बिना किसी समाज के अतीत को कल्पना और मतिभ्रम से दूर रखना असंभव है.
Diese Geschichte stammt aus der October 26, 2022-Ausgabe von India Today Hindi.
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