पिछले दिसंबर और उससे एक साल पहले भी ऐसा हुआ था. 1950 के दशक के मध्य में भाषाई आधार पर भारतीय राज्यों के बंटवारे के वक्त की कई चीजें दोहराई गईं. सभी मौकों पर इस सीमावर्ती जिले में तनाव बढ़ गया था. यह जिला कर्नाटक में है, पर महाराष्ट्र दशकों से इस पर दावा जताता रहा है, इस भावनात्मक आधार पर कि वहां मराठी बोलने वालों की काफी आबादी है. इस साल यह विवाद फिर उभर आया है. सुप्रीम कोर्ट में इससे संबंधित एक मुकदमे की 30 नवंबर को होने वाली सुनवाई से पहले दोनों पक्ष जोर आजमाइश के लिए तैयार थे.
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सीमा के इस विवाद पर सभी दलों के नेताओं के पैनल से मुलाकात की और इस जिले को महाराष्ट्र में मिलाने के संघर्ष में शामिल परिवारों को मुख्यमंत्री राहत कोष से मदद और स्वतंत्रता सेनानी पेंशन देने का वादा किया. बेलगावी को पाने के लिए इस 'उकसावे' पर तीखी प्रतिक्रिया हुई क्योंकि कन्नड़ बोलने वालों के लिए यह इतना ही भावनात्मक मुद्दा है. कर्नाटक में शिंदे के समकक्ष बसवराज बोम्मई ने पलटवार किया कि सभी सीमा विवाद 1956 में राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम के साथ समाप्त हो गए थे. लेकिन, अदालत में एक मुकदमा चल रहा है, इसलिए कर्नाटक की सर्वोच्च प्राथमिकता अपने पक्ष में अच्छी तरह से बहस करना है. उन्होंने यह भी कहा, "हमारा पक्ष मजबूत है." कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने भी सीमा पार से कर्नाटक में शामिल होने के लिए संघर्षरत लोगों के लिए स्वतंत्रता सेनानी पेंशन और वहां के कन्नड़-माध्यम के स्कूलों के लिए धन उपलब्ध कराने की बात कही. बोम्मई ने कर्नाटक सीमा और नदी संरक्षण आयोग के खाली पड़े पद पर नया अध्यक्ष नियुक्त करते हुए, इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक का प्रस्ताव पेश किया है.
Diese Geschichte stammt aus der December 14, 2022-Ausgabe von India Today Hindi.
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