हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाकों में पहली बर्फ गिरने का मौसम आ चुका है और मौसम विज्ञानी नजर बनाए हुए हैं कि इस दफा सर्दियों की तासीर कैसी रहने वाली है. अब तक दिन काफी गर्म रहे हैं, लेकिन लग रहा है कि मध्य हिमालय के पर्वतों में बसे इस राज्य में नया साल बर्फ की सफेदी साथ लाने वाला है. यहां अभी सिर्फ मौसम का जिक्र हो रहा है. वैसे शिमला के रिज पर तापमान आठ दिसंबर को खासा बढ़ा हुआ था. स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गेंदे की मालाओं, ढोल और नगाड़ों के साथ जीत का जश्न मनाया. हिमाचल प्रदेश में हर पांच साल में दूसरी पार्टी की सरकार आ जाती है. यह सिलसिला इस बार भी कायम रहा. अब यह अलग बात है कि भाजपा से जीतने का मौका कांग्रेस को रोज-रोज नहीं मिलता. ऐसी जीत कांग्रेस को चारेक साल के चुनावी सूखे के बाद नसीब हुई. आखिरी बार इस सबसे पुरानी पार्टी को अपने दम पर चुनाव जीतने का मौका 2018 में मिला था. हिमाचल प्रदेश भले ही छोटा राज्य है, और वोटों का प्रतिशत अगर देखा जाए तो जीत का फासला बहुत ज्यादा न था, पर मौका ऐसा बन गया है कि सर्दियों के बीच ही कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता वसंतोत्सव मनाने के मूड में आ गए हैं.
नयापन इस बार जीत के गणित में ही नहीं कांग्रेस की रणनीति में भी देखने को मिला. हिमाचल में हुई कांटे की लड़ाई में अगर कांग्रेस ने जीत हासिल की, तो इसकी बड़ी वजह रही पार्टी की बदली हुई रणनीति. इस बार कांग्रेस पूरी तरह से केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर नहीं थी. पिछली गलतियों से सीखते हुए इस बार टिकट बांटने से लेकर मुख्य मुद्दों के चयन तक, स्थानीय समीकरणों का ध्यान रखा गया था. दिल्ली में बैठे नेतृत्व ने स्थानीय काडर पर भरोसा जताया और इस भरोसे ने अपना काम बखूबी किया. हाइकमान के दूतों का काम बस इतना ही रहा कि जमीन पर पार्टी को एकजुट रखा जाए. नतीजतन पार्टी को 68 में से 40 सीटें मिलीं. भाजपा को 25 और स्वतंत्र उम्मीदवारों को तीन सीटें मिलीं.
Diese Geschichte stammt aus der December 21, 2022-Ausgabe von India Today Hindi.
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