तीनेक साल पहले आई एक फिल्म ने देशभर में काफी हलचल मचाई थी. अक्षय कुमार, विद्या बालन और सोनाक्षी सिन्हा जैसे नामी कलाकारों के अभिनय वाली मिशन मंगल दरअसल मंगल ग्रह के लिए एक सैटेलाइट छोड़े जाने के बारे में थी. दूसरे लाखों लोगों की तरह दिलीप कुमार त्रिपाठी (44) को भी उसे देखने की हूक उठी. वे उत्तर प्रदेश के नेपाल से लगे सिद्धार्थनगर जिले के हसुड़ी औसानपुर गांव के प्रधान थे. पूरे परिवार को लेकर सितंबर, 2019 में वे उसे देखने करीब 200 किलोमीटर दूर राजधानी लखनऊ जा पहुंचे. फिल्म देखते हुए उनके दिमाग में भी कुछ चलने लगा. इसी बीच इंटर में उन्होंने योगी सरकार की उपलब्धियों पर एक शॉर्ट फिल्म देखी: उत्तर प्रदेश बन रहा उत्तम प्रदेश. उन्हें ख्याल सूझा कि उत्तर प्रदेश अंतरिक्ष प्रदेश क्यों नहीं? फिल्म जब एक पॉजिटिव नोट पर खत्म हुई, तो दूर की कौड़ी-सा ही सही, उनके दिमाग में एक विचार गहराने लगा: अपने ही गांव के स्कूल में स्पेस लैब हो तो! अगले कुछेक घंटों में वे चुपचाप भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की वेबसाइट पर जाकर स्पेस लैब खोलने की जानकारी तलाश रहे थे. वहीं उन्हें इसरो से संबद्ध संस्था व्योमिका स्पेस प्राइवेट लिमिटेड की जानकारी मिली, जो कि उत्तर भारत में स्पेस एजूकेशन के क्षेत्र में काम कर रही थी. दिलीप ने पूछ-पड़ताल की, तो व्योमिका के सीईओ गोविंद यादव ने पहले यह जांचने की योजना बनाई कि क्या हसुड़ी औसानपुर के अपर प्राइमरी स्कूल के छात्रों का बौद्धिक स्तर इतना है कि वे अंतरिक्ष से जुड़ी बारीकियों को समझ सकें ? व्योमिका के विशेषज्ञों की एक टीम स्कूल गई और वहां के छात्रों की जानकारियों के स्तर को परखा. यादव बताते हैं, "हमारी टीम एक पिछड़े जिले के उस सरकारी स्कूल के छात्रों में अंतरिक्ष के बारे में जानकारियों का स्तर देखकर हैरान थी. मेरी कंपनी ने वहां खुशी-खुशी स्पेस लैब स्थापित करने का फैसला किया. यह बड़ा फैसला था, क्योंकि ग्रामीण इलाके के किसी सरकारी स्कूल में खुलने वाला यह देश की पहली स्पेस लैब है." लैब इस साल बाल दिवस पर यानी 14 नवंबर को शुरू हो गई.
Diese Geschichte stammt aus der December 21, 2022-Ausgabe von India Today Hindi.
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