बातचीत - गौतम अदाणी
• प्र. पीछे मुड़कर 2022 की तरफ देखें, तो वह क्या है जिसने आपके लिए इस साल को इतना खास बना दिया ?
मेरे लिए 2022 कई लिहाज से असाधारण साल रहा. हम अदाणी विल्मर का कामयाब आइपीओ लाए और अब यह हमारे ग्रुप की सातवीं लिस्टेड कंपनी बन गई है. हमने ऐसा बिजनेस मॉडल बनाया है जिसमें हम बिल्कुल नीचे से शुरू करते हैं, उसे मुनाफे में लाते हैं और फिर आम लोगों को शेयर देते हैं. यह आइपीओ इसकी एक और मिसाल था. करीब 10.5 अरब डॉलर (86,787 करोड़ रुपए) में एसीसी और अंबुजा सीमेंट का अधिग्रहण करके हम भारत के दूसरे सबसे बड़े सीमेंट मैन्युफैक्चरर भी बन गए. यह हमारा अब तक का सबसे बड़ा अधिग्रहण है और यह इन्फ्रास्ट्रक्चर व मटीरियल्स के क्षेत्र में भारत का अब तक का सबसे बड़ा एमऐंडए (विलय और अधिग्रहण) सौदा भी है.
• सबसे अमीर भारतीय और सबसे अमीर एशियाई होने के अलावा अब आप दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स भी हैं. इतना धनवान होना कैसा लगता है ? आपके लिए रुपए-पैसे के क्या मायने हैं ?
देखिए, इन रैंकिंग और आंकड़ों की मेरे लिए कोई अहमियत नहीं है. ये तो बस मीडिया में उछाले जाते हैं. मैं पहली पीढ़ी का आंत्रप्रेन्योर हूं, जिसने बिल्कुल खाक से सब कुछ खड़ा किया. मुझे अपना रोमांच चुनौतियों से जूझने से मिलता है. वे जितनी ज्यादा बड़ी होती हैं, उतना ही ज्यादा मैं खुश होता हूं. मेरे लिए लोगों की जिंदगी में बदलाव लाना और देश की तरक्की में योगदान देने का मौका और उसकी क्षमता होना, किसी अमीरी की रैंकिंग में होने से ज्यादा संतोषजनक है.
• आपको खुशी किस चीज से मिलती है ?
निजी तौर पर कहूं तो यह साल मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा साल था. इस साल मैंने अपना 60वां जन्मदिन मनाया, जो व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए एक अहम पड़ाव था. इसके अलावा मेरे परिवार ने अदाणी फाउंडेशन को 60,000 करोड़ रुपए उन तीन सामाजिक कामों में मदद के लिए देने का वादा किया जो मेरे दिल के करीब हैं- शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और स्किल डेवलपमेंट. ये किसी भी राष्ट्र के लिए बुनियादी जरूरतें हैं. इससे मुझे बेहद संतोष और खुशी मिली, जो किसी पेशेवर उपलब्धि से कभी नहीं मिल सकती.
Diese Geschichte stammt aus der January 11, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"