बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए साल 2022 का आखिरी दिन भारतीय राजनीति की दशा-दिशा को प्रभावित कर सकने वाली एक और धुरी बनाने के बिल्कुल सही मौके जैसा था. पटना में मीडिया ने जब 2024 में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में राहुल गांधी को पेश करने की मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की दलील पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने एक तरह से इसका समर्थन करते हुए कहा, "ठीक है, उसमें क्या बुराई है? आखिरकार उन्हें (विपक्षी दलों को) कोई उम्मीदवार तो चुनना ही है." हो सकता है कि इस मुद्दे पर नीतीश की राय निर्णायक न हो, लेकिन उनके इन शब्दों ने आगे बढ़ते हुए ऐसे समय में धारणाओं का संतुलन बदला है, जब राहुल की भारत जोड़ो यात्रा को विपक्ष से थोड़ी बहुत ही उत्साहजनक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं. सड़कों पर लहराती भीड़ और सोशल मीडिया पर उत्साह के अंतहीन दृश्यों के बीच अपना खोया हुआ जादुई आकर्षण फिर से पा लेने की कांग्रेस की खुशी का शुद्ध राजनीतिक प्रभाव हद से हद मिलाजुला कहा जा सकता है.
नए साल पर राहुल की भारत जोड़ो यात्रा ने जब उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया तो राज्य के दोनों बड़े विपक्षी नेताओं- सपा के अखिलेश यादव और बसपा की मायावती की प्रतिक्रियाओं में सौहार्द के बजाए औपचारिकता का पुट ज्यादा था. अखिलेश की प्रतिक्रिया तो दोनों नेताओं के बीच तीखी नोक-झोंक के बाद आई. उत्तरी राज्यों से आगे, कम से कम दो विपक्षी मुख्यमंत्री - पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी और तेलंगाना के के. चंद्रशेखर राव - कांग्रेस की प्रधानता स्वीकारने के इच्छुक नहीं हैं. दिल्ली के अरविंद केजरीवाल निस्संदेह स्वाभाविक प्रतिद्वंद्वी हैं. यही वह जगह है जहां नीतीश का हस्तक्षेप एक भूमिका निभा सकता है, क्योंकि उनकी पहुंच सभी पक्षों तक है.
Diese Geschichte stammt aus der January 18, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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