नीति आयोग के 2018 में आए अध्ययन में दावा किया गया था कि इलेक्ट्रिक और साझा परिवहन पर जोर से 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 1 गीगाटन की कटौती और डीजल तथा पेट्रोल के खर्च में 60 अरब डॉलर तक की बचत हो सकती है. लेकिन असली हलचल तब हुई जब केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने घोषणा की कि 2030 तक उनका लक्ष्य और केंद्र की नीति होगी इलेक्ट्रिक वाहनों का 100 फीसद इस्तेमाल. फिर क्या था, ऑटो उद्योग के मालिकों के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उन्हें यह लक्ष्य अव्यवहारिक लगा. मैं आयोग के आंकड़ों से आश्वस्त नहीं था, लेकिन उसकी दिशा से सहमत था. कुछ हफ्ते बाद मैंने अपनी बात कहने का साहस जुटाया और इंडियन मशीन टूल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रकाशन को बताया कि इलेक्ट्रिक दोपहिया (ई2डब्ल्यू), तिपहिया (ई3डब्ल्यू) और छोटे चार पहिया वाणिज्यिक वाहनों के मामले में 2030 तक इनका इस्तेमाल 100 फीसद करना संभव है. मेरी सिर्फ एक शर्त थी कि सरकार वित्तीय प्रोत्साहन की उपयुक्त व्यवस्था करे और शुरुआत में ई-वाहन की ओर रुख करने वालों के लिए चार्ज करने का जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाए, क्योंकि सिर्फ ई-वाहनों की कुल लागत वैसे भी आंतरिक दहन इंजन (आइसीई) यानी पेट्रोल-डीजल वाहनों का बाजार फीका कर देगी.
Diese Geschichte stammt aus der January 25, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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ठोकने की यह कैसी नीति
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"