अभी एक साल पहले की ही बात है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की लहर पर सवार होकर भगवंत मान ने सत्ता की कमान संभाली थी, जब मतदाताओं ने राज्य की दो सबसे शक्तिशाली पार्टियों कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) को बुरी तरह नकार दिया था. 1966 में इस सीमावर्ती राज्य के वजूद में आने के बाद से ये दोनों दल ही बारी-बारी यहां शासन करते रहे हैं. 49 साल के मान भी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की तरह राजनीति में आने से पहले लोकप्रिय कॉमेडियन थे. राजनीति में आप की नई बयार के साथ बदलाव के उनके वादे ने मतदाताओं को खूब लुभाया, जिनका कथित राजनैतिक चालबाजियों के कारण राज्य के पुराने दलों से मोहभंग हो चुका था.
अब, यही मान 16 मार्च को जब पंजाब में पहली आप सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में एक साल पूरा करने वाले हैं तो मतदाताओं के बीच उत्साह काफूर हो चुका है. मान को विरासत में ऐसा बीमार राज्य मिला, जो दो दशक तक सिख उग्रवाद झेलने के बाद कर्ज के बोझ से दबा था, प्राकृतिक संसाधनों के अति-दोहन के कारण किसानों और बेरोजगार युवाओं के आक्रोश का सामना कर रहा था, और शे में उड़ते पंजाब की कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में तो किसी से कुछ छिपा नहीं है. जाहिर है, किसी भी सियासी दल के नेता के लिए इस तरह के अस्थिर राज्य का प्रशासन संभालना और स्थितियां बदलना कोई आसान काम नहीं होने वाला था. और फिर, मान तो सियासत में नौसिखिया ही थे. इन समस्याओं का कोई त्वरित समाधान मुमकिन भी नहीं था.
Diese Geschichte stammt aus der March 15, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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