यहीं है हिंदी के पाठकों, लेखकों, प्रकाशकों, प्रशंसकों की दुनिया. हॉल में घुसने से पहले ही सेल्फी प्वाइंट पर एक महिला हाथ में किताब लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कटआउट के साथ तस्वीर खिंचाती नजर आती है. आप पुस्तक मेले में हैं. 50 वसंत पहले शुरू हुई इस परंपरा का यह 31वां स्वरूप है. इस बीच कितना कुछ बदला है, किताबों के बाहर भी और भीतर भी. कोविड के कारण दो वर्ष बाद लगे मेले में सब अलग-अलग उछाह, अलग-अलग कारणों से यहां पहुंच रहे हैं.
शुरुआत में ही राजकमल प्रकाशन का जलसाघर है. एक तरफ कोने में मंच पर उदय प्रकाश की प्रतिनिधि कविताओं पर चर्चा चल रही है. पुस्तकें खरीद रही भीड़ का ध्यान चर्चा पर नहीं है. मंच के कुल 8-10 श्रोताओं में लेखक और लेखन की दुनिया से जुड़े लोग हैं, आम पाठक नहीं. "मेला अब पाठकों का आईना नहीं रहा," ऐसा सुजाता कहती हैं. वे लेखिका हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं, यहां अगले सत्र में ज्ञानपीठ से पुरस्कृत कवयित्री अनामिका से बातचीत के लिए मौजूद हैं. वे कहती हैं, "किताबें ऑनलाइन खरीद ली जाती हैं. लोग यहां अदबी दुनिया के चेहरों से रू-ब-रू होने आते हैं. सेल्फी खिंचाने के पागलपन में यह देख पाना मुश्किल है कि असली पाठक कौन है."
Diese Geschichte stammt aus der March 15, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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