वाड़मेर, राजस्थान का एक सरहदी जिला. यहां दूरदूर तक रेत के धोरे और रेगिस्तान फैला है. पुराने समय से ही इस इलाके में एक कहावत प्रचलित है “घी दुल्यां म्हारा की नीं जासी, पाणी ढुल्यां म्हारो जी बले" यानी, घी फैलने से हमें कुछ फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन पानी फैलने से हमारा दिल जलेगा. पानी को यहां घी और जिंदगी से भी अनमोल माना गया है लेकिन अब यही जल यहां के लोगों को जिंदगी के जख्म दे रहा है. जख्म ऐसे हैं कि बाड़मेर जिले के 21 थाना क्षेत्रों में पिछले पांच साल में 250 से ज्यादा लोगों ने पानी की भूमिगत टंकियों, जिन्हें राजस्थान में टांका कहा जाता है, में कूदकर जान दे दी. इनमें बड़ी तादाद महिलाओं और बच्चों की है.
बाड़मेर जिले के धोरीमना तहसील के लुखु गांव की कमला के जख्म भी कुछ ऐसे ही हैं. कमला की नाबालिग बेटी सुशीया ने 22 फरवरी 2023 को अपने नाबालिग प्रेमी दिनेश के साथ पानी के टांके में कूदकर जान दे दी. दिनेश और सुशीया दोनों का ननिहाल लुखु गांव है. दिनेश ज्यादातर ननिहाल में ही रहता था जबकि सुशीया 22 फरवरी को यहां आ गई थी. दिन में दोनों एक साथ घर से निकले और वापस घर नहीं लौटे. गांव के बाहर स्कूल के पास पानी के टांके के बाहर जूते देखकर वहां से गुजर रहे लोगों ने जब टांके में झांककर देखा तो दो लाशें तैरती नजर आईं. इसके बाद पुलिस की मौजूदगी में दोनों शव टांके से बाहर निकाले गए.
इसी तहसील के नेहड़ी-नाहड़ी गांव के पाबूराम के लिए भी आगे की जिंदगी बड़ी दूभर होने वाली है. उनकी 30 वर्षीय गर्भवती पत्नी पदमा ने 5 मार्च 2023 को पानी के एक टांके में कूद कर आत्महत्या कर ली. पदमा की दो छोटी-छोटी बेटियां हैं और अब इनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी अकेले पाबूराम पर आ पड़ी है.
Diese Geschichte stammt aus der March 22, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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