अस्सी वर्ष का होने से तीन दिन पहले 27 फरवरी को बी.एस. येदियुरप्पा ने कर्नाटक विधानसभा को अलविदा कह दिया. यह एक विधायक के रूप में उनके 40 साल के करियर पर पूर्णविराम था. यह उस शख्स के लिए एक जज्बाती लम्हा था जो कभी राज्य में भाजपा का अकेला विधायक था और जिसकी अगुआई में 15 साल पहले कर्नाटक में पहली बार पार्टी की सरकार बनी थी. 2019 में भाजपा ने राज्य में दोबारा सरकार बनाई तो उन्हें फिर से कुर्सी मिली. पिछले साल भर में उन्होंने कई बार संकेत दिए कि वे अब विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन विदाई भाषण में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि रिटायर व्यक्ति की तरह वे घर में बैठने नहीं जा रहे, उन्होंने कुछ लक्ष्य रखा है और उसे पूरा करने में खुद को झोंक देंगे. वह लक्ष्य है: मई में भाजपा को फिर से सत्ता में लाना. यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं होगी क्योंकि कर्नाटक में किसी सत्तारूढ़ पार्टी ने आखिरी बार 1985 में सत्ता में वापसी की थी. भाजपा के सामने तो अतिरिक्त चुनौती है- कर्नाटक उसके लिए 'दक्षिण भारत में प्रवेश का द्वार' है.
पर 80 की उम्र में, लगता है, येदियुरप्पा भाजपा के कुछ जाने-पहचाने फॉर्मूलों की अनदेखी कर रहे हैं-खासकर, बुजुर्ग दिग्गजों के लिए रिटायरमेंट का पैमाना. जुलाई, 2021 में कार्यकाल के बीच में ही मुख्यमंत्री का पद छोड़ देने और आगामी चुनाव न लड़ने के फैसले पर अटल होने के बावजूद येदियुरप्पा राज्य के चुनावों अभियान की धुरी हैं, जबकि पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर कहीं ज्यादा निर्भर है. हाल की रैलियों में शीर्ष नेताओं ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से ज्यादा येदियुरप्पा के नाम का इस्तेमाल किया. 27 फरवरी को येदियुरप्पा के जन्मदिन पर मोदी एक नए हवाई अड्डे का उद्घाटन करने उनके गृह जिले शिवमोगा गए और वहां यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि पार्टी उन्हें कितना महत्व देती है.
Diese Geschichte stammt aus der March 29, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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