सोनभद्र के सुदूर दक्षिण में दुद्धी तहसील में विंध्य पहाड़ियों की गोद में बसे आदिवासी बाहुल्य गांव भीसुर के रहने वाले रामलोचन तब महज 19 साल के थे जब वे अपने पिता सुखरन को लेकर बगल के अमवार गांव में कनहर सिंचाई परियोजना के शिलान्यास समारोह में गए थे. वह 6 अक्तूबर, 1976 का दिन था और प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी आदिवासी बाहुल्य इलाकों की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना की नींव रखने अमवार गांव पहुंचे थे. अब 65 साल के हो चुके रामलोचन बताते हैं, "हमने बचपन से सूखा ही देखा था, ऐसे में पानी से सिंचाई करने की बात दुद्धी समेत आसपास के इलाकों में बिजली की तरह कौंध गई थी. अमवार में लाखों लोगों की मौजूदगी में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने कनहर सिंचाई परियोजना की नींव रखी थी." लेकिन इसके बाद पानी की आस में दिन गिनने के सिवा रामलोचन समेत हजारों आदिवासियों को कुछ नहीं मिला. देखते-देखते साढ़े चार दशक बीत गए. रामलोचन के बेटे और बेटों के बेटे हो गए लेकिन कनहर योजना परवान न चढ़ सकी. जो थोड़ी बहुत पुश्तैनी जमीन थी, वह रामलोचन के सात बेटों में बंट गई. 46 साल बाद भीसुर गांव में एक झोंपड़ी में रहकर परचून की दुकान चलाने वाले रामलोचन को मुआवजा देने के बाद सिंचाई विभाग ने एक नोटिस थमा दिया है जिसमें जून तक जगह खाली करने को कहा गया है. भीसुर समेत आसपास के 11 गांव जल्द ही कनहर परियोजना में बनने वाले जलाशय में जलसमाधि लेने वाले हैं. अपनी पुश्तैनी जमीन से विस्थापित होने के दर्द के साथ रामलोचन को यह संतोष है कि वह अपने जीते जी उस कनहर सिंचाई परियोजना को पूरा होते देख लेंगे जिसके खिलाफ विस्थापितों की जंग में उन्होंने अपनी पूरी जवानी खपा दी. तीन हजार से अधिक आदिवासी परिवार हैं जो कनहर सिंचाई परियोजना के पूरा होने की आस तक रहे हैं.
Diese Geschichte stammt aus der April 26, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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