अगर 'भारतीय मूल’ की परिभाषा में अखंड भारत को भी समाहित कर लें, तो हमने इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और जीएलसी यानी ग्रेटर लंदन काउंसिल की कमान देसियों के हाथों में होने के बारे में ताजपोशी के मीम देखे. हूं...वेल्स क्यों नहीं, खासकर अगर उनके भारतीय लहजे को देखा जाए?
तिस पर भी एंग्लोस्फीयर यानी सामूहिक तौर पर मूल अंग्रेजी भाषा वाले देशों पर भारत की फतह का काम पिछले कुछ वक्त से चल रहा है. इस श्रेणी के दस में से सात लोग ऊंचे और रसूखदारों की पिछली फेहरिस्त के बाद शिखर पर विराजमान हैं, हालांकि क्रम कुछ बदल गया है. 2021 में ऋषि सुनक महज चांसलर ऑफ द एक्सचेकर यानी वित्त मंत्री थे. पिछले सात महीनों में उन्होंने इस द्वीपीय देश पर हुकूमत के लिए जरूरी अनगढ़ महत्वाकांक्षा और चालाकी दिखाई है. हैरानी क्या कि उन्होंने शीर्ष स्थान कमला हैरिस से छीन लिया जिनका अमेरिका के वीपी के पद पर कार्यकाल तुलनात्मक तौर पर घटनाविहीन रहा.
उल्लेखनीय है कि सूची के दूसरे नामों (एक अपवाद छोड़कर) के विपरीत सुनक और हैरिस यहां विदेश में जन्मे अकेले वैश्विक भारतीय हैं. यह शायद इस बात का संकेत है कि जन्म का भूगोल उपलब्धि के दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले राजनैतिक करियर के लिए ज्यादा अहम होता है. भारत में जन्मे इस समूह के बाकी लोग अमीरों की वैश्विक फेहरिस्तों, अकादमिक जगत, वित्तीय व औद्योगिक क्षेत्र, हॉलीवुड, और सिलिकॉन वैली के गढ़ों में तहलका मचाने निकल पड़े. एक वक्त था जब भारत 'ब्रेन ड्रेन' या प्रतिभा पलायन पर छाती पीटता था. फिर भी काबिल भारतीयों के विदेश कूच में कमी का कोई संकेत नहीं है - बल्कि वह बढ़ा है - लेकिन विरोधाभास यह कि भूमंडलीकरण ने हमारे इस डर को शांत कर दिया है कि हम अपने वैश्विक भारतीयों को गंवा बैठे हैं.
1 ऋषि सुनक, 43 वर्ष
प्रधानमंत्री, यूके
काम से हुआ नाम
Diese Geschichte stammt aus der June 07, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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