आजकल तूफानों के भी नाम होते हैं. हल्की-सी डगमगाहट महसूस होने पर इस तूफान को कोविड नाम दिया गया था. पर दुनिया भर की बत्तियां गुल कर देने वाले इस दैत्य के हमले के वक्त मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल को साल भर भी नहीं हुआ था. स्वास्थ्य के मोर्चे पर यह इमरजेंसी इतने गहरे और व्यापक असर वाली थी कि अनिवार्य तौर पर मोदी 2.0 को परिभाषित करने वाली घटना बन गई. लॉकडाउन ने तमाम गतिविधियों पर ताले डाल दिए और वजूद बचाने की नौबत आ पड़ी. एक के बाद एक क्षेत्रों का इस कदर दम घुटा कि अर्थव्यवस्था 2020 की लगातार दो तिमाहियों में शून्य से नीचे गोता लगा बैठी. यह जटिल पहेली थी. इससे फौरन कैसे पार पाएं? आर्थिक मोर्चे वाले इस 'लॉन्ग कोविड' से निबटने को कौन-सी नीतियां गढ़ें? यह कयामत और नाउम्मीदी, बुरे लम्हे से पैदा सुस्ती और काहिली लंबे वक्त तक चलने का पूरा अंदेशा था. क्या कोई उससे बेहतर स्थिति में लौटने की कोशिश कर सकता था? अर्थव्यवस्था आखिरकार कोविड से पहले की कई तिमाहियों से सुस्ती का शिकार थी.
Diese Geschichte stammt aus der June 14, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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