इन बयानों को उन खांचों में डाला जा सकता है, जो नाराजगी के कोष्ठक में आते हैं. और शिवराज को लेकर पार्टी में अंदरखाने शीर्ष के दावेदार रहे या जो अभी भी हैं, गाहे-बगाहे इसे प्रकट करते रहते हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 24 घंटे गुजारते ही हाउस ऑफ भाजपा की भुनभुनाहट सुनाई देने लग जाती है. प्रदेश अध्यक्ष और खजुराहो सांसद वी. डी. शर्मा रहेंगे या जाएंगे, इसकी चर्चा है. ज्योतिरादित्य सिंधिया और मुख्यमंत्री, इन दोनों ही खेमों में पटरी न बैठने की बात है. सीएम ग्रुप अंदरखाने निकाय चुनाव में हार का ठीकरा भी संगठन पर ही फोड़ता दिखा. बदलाव के वास्ते दोनों तरफ की और भी दलीलें हैं. एक यह कि हर जिले में वरिष्ठों को किनारे कर विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि वालों को संगठन दे दिया गया. दूसरी यह कि चुनाव से इतना करीब से बदलेंगे तो नए से संभाल कैसे होगी. और इस दूसरे तर्क की काट के लिए फिर एक तर्क कि ऐसे को लाओ, जो संगठन की चूलों से वाकिफ हो. ऐसे के एवज में जैसे भी आता है. पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर, कैलाश विजयवर्गीय और राजेंद्र शुक्ल के नाम गिना दिए जाते हैं. फिर एक कोने से एक और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल का जिक्र भी आता है. मगर इस नाम के साथ आता है सामाजिक समीकरण कि मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष, दोनों पिछड़े समाज से कैसे आ सकते हैं.
संगठन को लेकर एक और कसमसाहट है. संगठन मंत्री हितानंद शर्मा के ऊपर संघ परिवार के ही शिवप्रकाश और अजय जामवाल की सक्रियता. हालांकि शर्मा के करीबी इसे संयोजन और चुनावी दृष्टि से जरूरी बताते हैं, मगर विरोधी खेमा इसे पर कतरना कह रहा है. पार्टी के प्रभारी महासचिव मुरलीधर राव के दौरों और बैठकोंसुझावों को लेकर भी अपनी-अपनी व्याख्याएं हैं.
Diese Geschichte stammt aus der June 28, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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