महाराष्ट्र में जिस तरह सत्ता हथियाने के लिए गठबंधन किया गया, उसमें खींचतान होना स्वाभाविक है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे जहां लगातार यह दिखाने के लिए परेशान हैं कि वे महज कठपुतली मुख्यमंत्री भर नहीं हैं, वहीं 'सहयोगी' भाजपा उन्हें यह याद दिलाने का कोई मौका नहीं चूकना चाहती कि वे जो कुछ भी हैं, उसकी बदौलत हैं. और इसलिए सत्तारूढ़ गठबंधन के अंदर ही शह-मात का एक खेल लगातार जारी है.
ताजा टकराव कल्याण लोकसभा क्षेत्र को लेकर हो रहा है, जिसका प्रतिनिधित्व शिंदे के बेटे डॉ. श्रीकांत करते हैं. विवाद तब शुरू हुआ जब शिंदे के करीबी एक पुलिस निरीक्षक ने सार्वजनिक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) मंत्री रवींद्र चव्हाण के एक सहयोगी के खिलाफ कथित छेड़छाड़ का केस दर्ज किया. भाजपा नेताओं ने इसे 'बदले की कार्रवाई' बताया और निर्वाचन क्षेत्र में सेना के शिंदे गुट से सहयोग न करने की धमकी भी दे डाली. इस पर श्रीकांत ने अपनी सीट छोड़ने की पेशकश तक कर दी. अविभाजित ठाणे लोकसभा सीट कभी भाजपा का गढ़ हुआ करती थी लेकिन 1990 के दशक में गठबंधन समझौते के तहत यह शिवसेना के कब्जे में आ गई थी. कहा जा रहा है कि शिंदे की खीज बढ़ाते हुए भाजपा अब कल्याण निर्वाचन क्षेत्र से अपना उम्मीदवार उतारने की उत्सुक है, जो 2008 में ठाणे सीट के विभाजन के बाद बना था.
बात यहीं तक सीमित नहीं है. गठबंधन के भीतर कई अन्य मोर्चों पर भी टकराव जारी है. बताया जा रहा है, भाजपा नेतृत्व चाहता है कि शिंदे मंत्रिमंडल में शिवसेना गुट के नौ मंत्रियों में से पांच - अब्दुल सत्तार, गुलाबराव पाटिल, संजय राठौड़, संदीपन भुमरे और तानाजी सावंत - को कैबिनेट फेरबदल से पहले बाहर का रास्ता दिखाया जाए. लेकिन सीएम शिंदे इस पर तैयार नहीं हैं. संभवत: यही वजह है कि पहले ही काफी समय से लटका मंत्रिमंडल विस्तार और टल गया है. भाजपा की ओर से सभी 288 विधानसभा और 48 लोकसभा सीटों-जिसमें शिंदे गुट की जीती सीटें भी शामिल हैं के लिए समन्वयक नियुक्त करने के फैसले ने सहयोगी दलों के बीच दरार और बढ़ा दी है. भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले तो यह तक कह चुके हैं कि पार्टी 2024 में अधिकांश विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी और शिंदे और उनकी पार्टी के लिए सिर्फ 50 सीटें छोड़ेगी.
Diese Geschichte stammt aus der July 12, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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