पंडे-पुजारी जैसा वहां कोई दिख नहीं रहा था. तभी सफेद पैंट-शर्ट पहने एक शख्स सकुचाया-सा भीड़ से थोड़ा अलग खड़ा नजर आया. मंदिर के पुजारी मादाराम के बारे में पूछे जाने पर उसने तपाक से कहा, "मैं ही मादाराम हूं, बताइए क्या काम है?" अनजान लोगों को देखकर मादाराम पहले इतने डर गए थे कि उनके मुंह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी. डर की भी वजह थी. पिछले एक अरसे से सवर्णों के कुछ संगठन राजस्थान के मंदिरों में दलित पुजारी लगाए जाने का विरोध कर रहे हैं.
आनंद कृष्ण बिहारी मंदिर राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग का है और मादाराम इस मंदिर के पहले दलित पुजारी हैं जो प्रदेश सरकार की सीधी भर्ती से चयनित होकर आए हैं. बाकायदा प्रशिक्षण के बाद उन्हें पुजारी नियुक्त किया गया. नागौर जिले की जायल तहसील से आने वाले मादाराम ने यहां तक पहुंचने के लिए कम पापड़ नहीं बेले. 2004 में उन्होंने बीएड कर लिया था. उसके बाद से ही वे प्रदेश में शिक्षक भर्ती की और दूसरी परीक्षाओं में भी लगातार बैठते आए थे लेकिन कामयाबी दूर ही दूर रही. 2014 में जब उन्होंने पुजारी पद के लिए इम्तिहान दिया तब नौकरी की उम्मीद जगी थी. लेकिन नौ साल तक रिजल्ट रुका रहा तो वह उम्मीद भी सांस तोड़ने लगी. 2022 में जाकर उसका रिजल्ट आया, पर नियुक्ति में फिर भी देरी होती रही. उसके बाद मंदिर में उन्हें नियुक्ति मिली तो सर्व ब्राह्मण महासभा जैसे कुछ संगठनों को इसमें सवर्ण पुजारियों का पुश्तैनी पेशा खतरे में पड़ता दिखा. वे इसके विरोध में लामबंद हो गए. मादाराम यहां अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हैं, "जब मैं 8वीं कक्षा में था तभी से मेरी भगवान में आस्था है. मैं जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करता हूं. शाम छह बजे के बाद न खाना खाता हूं, न पानी पीता हूं. मेरा पूरा परिवार भजनकीर्तन करता है. फिर भी न जाने क्यों लोग मेरी नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं."
Diese Geschichte stammt aus der July 19, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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