पहाड़ों से घिरी राज्य की राजधानी भोपाल में भी वही अनियंत्रित स्थिति देखी जा रही है जिसने अन्य शहरों की सुंदरता को बर्बाद कर दिया है. शहर को एक मास्टर प्लान-बेतहाशा पनप रहे कंक्रीट के जंगलों को नियंत्रित करने के लिए एक सक्षम कायदा-कानून- की सख्त जरूरत महसूस हो रही है लेकिन लंबे समय से सरकार उसे अधिसूचित तक नहीं कर पा रही.
2008 में, मुख्यमंत्री के रूप में, चौहान एक मास्टर प्लान को अंतिम रूप देने के करीब थे लेकिन दिवंगत आइएएस अधिकारी एम. एन. बुच जैसे पर्यावरणविदों की आपत्ति के बाद इसे वापस ले लिया गया. चौहान ने 10 वर्षों तक शासन किया, लेकिन इस दिशा में फिर कभी कोई प्रयास नहीं किया. 2020 में, कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने एक मसौदा जारी किया लेकिन सरकार जल्द ही गिर गई. चौहान की सत्ता में वापस हुई और मुद्दा ठंडे बस्ते में रहा. सूत्रों का कहना है कि मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने सीएम को मास्टर प्लान पर तत्काल पुनर्विचार करने के लिए राजी कर लिया, लेकिन 2020 के मसौदे में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों के साथ.
Diese Geschichte stammt aus der August 16, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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