विक्रम का खुला घाव देखते ही नर्स हेमा उनकी मां पर बिफर पड़ीं, "इनका बैंडेज आपने क्यों नहीं किया... आपको याद नहीं कि इसमें कितना कीड़ा लग गया था? बैंडेज रोज करना है."
मुजफ्फरपुर शहर के एक पुराने मोहल्ले में एक गली के आखिर में विक्रम कुमार गुप्ता रहते थे. वे ओरल कैंसर के मरीज थे. नवंबर, 2022 में डॉक्टरों ने साफ कह दिया था कि अब उनका कोई इलाज नहीं हो सकता.
33 साल के विक्रम अपनी मां के साथ रहते थे. घर के पलंग पर लेटे विक्रम सूखकर कांटा हो गए थे. चेहरे का बायां हिस्सा इतने गहरे घाव से भरा हुआ था कि हड्डियां तक नजर आती थीं. उनकी मां सुनीता देवी ने उस रोज कहा था, "हम इसको बार-बार अस्पताल ले जाने की स्थिति में नहीं हैं. 15 दिन में एक बार भी अगर ये लोग ( अस्पताल की टीम) आ जाते हैं तो सहारा हो जाता है." किसी को खबर नहीं थी कि यह विक्रम की आखिरी ड्रेसिंग है. तीन दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई.
अमूमन किसी मरीज की मृत्यु के बाद उसकी चिकित्सा से जुड़े लोगों को कोई नहीं करता. मगर विक्रम के परिजनों ने चिट्ठी लिखकर उन स्वास्थ्यकर्मियों का शुक्रिया अदा किया और लिखा, “हम लोग उन नर्स मैडम के शुक्रगुजार हैं, जो विक्रम की ड्रेसिंग के लिए हमारे घर आया करती थीं. उन्होंने आखिरी वक्त में विक्रम की अच्छे से देखभाल की."
विक्रम कैंसर के उन दो सौ से अधिक मरीजों में से एक थे, जिन्हें मुजफ्फरपुर का होमी भाभा कैंसर अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर अस्पताल पिछले दो साल से घर में देखभाल की सुविधा उपलब्ध करा रहा है. ये मरीज कैंसर की आखिरी स्टेज में हैं इसलिए इनका इलाज बंद हो चुका है. अस्पताल के पैलिएटिव केयर डिपार्टमेंट के प्रभारी डॉ. निशांत कुमार कहते हैं, "मगर इनकी मृत्यु दर्दरहित हो, परिजनों के बीच हो और गरिमापूर्ण हो इसलिए हम सेवा शुरू की है. इसे हम होम बेस्ड पैलिएटिव केयर कहते हैं."
Diese Geschichte stammt aus der August 23, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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