एक राष्ट, एक चुनाव
इसके महज दो दिन बाद-रविवार को-कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने प्रस्ताव से संबंधित संवैधानिक प्रावधनों के बारे में कोविंद को जानकारी दी. उन्होंने चर्चा की कि इस मुद्दे पर विचार करने के लिए उनकी समिति को किस तरह के सहयोग की जरूरत पड़ सकती है. वहीं, कई लोगों का मानना है कि 18-20 सितंबर तक संसद के आगामी विशेष सत्र में ओएनओपी का मामला केंद्र में रहेगा. अगर इसे जल्दबाजी नहीं, तो निश्चित रूप से भाजपा की तरफ से ओएनओपी पर जोर देने का असाधारण हठ कहा जा सकता है.
लोकसभा चुनाव में अब कुछ महीनों का वक्त बचा है और विपक्षी पार्टियों ने इस कदम को लेकर आशंका जाहिर की है. उन्होंने कहा है कि एक साथ चुनाव कराने से भारत की बहुदलीय प्रणाली और संघवाद को नुक्सान होगा तथा देश को राष्ट्रपति शासन प्रणाली में धकेल दिया जाएगा. वे समिति की संरचना और उसमें शामिल लोगों में भी पूर्वाग्रह की ओर इशारा करते हैं. वे मानते हैं कि इसका असली मकसद ऐसे कानूनों को आगे बढ़ाना है जो अंततः केवल नरेंद्र मोदी को फायदा पहुंचाएंगे और उनकी सरकार को जवाबदेही से बचने में सक्षम बनाएंगे. वास्तव में इन चिंताओं को यह तथ्य भी पुख्ता करता है कि कोविंद की समिति में केवल एक विपक्षी नेता, कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को जगह दी गई थी. चौधरी ने भी इस कवायद को महज “दिखावा" बताते हुए समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया. उन्होंने दावा किया कि समिति की "संदर्भ की शर्तें" ऐसी थीं जो केवल "इसके निष्कर्षों की गारंटी " देती थीं. इस तरह से फिलहाल कोविंद की समिति में कश्मीर के गुलाम नबी आजाद को छोड़कर और कोई भी गैर-भाजपा नेता शामिल नहीं है. गुलाम नबी आजाद ने भी पिछले साल कांग्रेस छोड़ दी थी और जम्मू-कश्मीर में अपनी क्षेत्रीय पार्टी बनाई थी.
Diese Geschichte stammt aus der September 20, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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