मधेपुरा शहर से तकरीबन 11 किमी दूर एक छोटा-सा गांव है, भेलवा. इस गांव में 250 परिवार रहते हैं. भेलवा बाजार से लगभग एक किमी अंदर जाने पर एक गली के आखिर में एक बड़ा-सा मकान है और उस मकान के ठीक सामने एक ऊंचे खंभे में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की तसवीर वाला झंडा फहराता नजर आता है. इस मकान को देखकर कुछ भी पूछने की जरूरत नहीं पड़ती. समझ आ जाता है कि यही बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर का घर है.
हिंदी दिवस के मौके पर एक आयोजन में रामचरित मानस के एक छंद की तुलना सायनाइड से करने की वजह से विवाद में आए चंद्रशेखर इन दिनों मीडिया से बातचीत करने से बच रहे हैं. ऐसे में लगा कि उनके पैतृक आवास पर मौजूद लोग भी शायद बातचीत न करें. मगर उन्होंने न सिर्फ दरवाजा खोला, बल्कि दरवाजे पर एक चौखड़े दालान में हमें बिठाया और थोड़ी देर में एक छोटी-सी महफिल जम गई. उस महफिल में मंत्री चंद्रशेखर के खानदान के कई लोग थे और उनके पुराने मैनेजर जनार्दन शर्मा भी थे. थोड़ी-सी बातचीत के बाद ही ये लोग खुल गए.
रिश्ते में मंत्री चंद्रशेखर के चाचा लगने वाले रत्नेश यादव ने कहा, “देखिए, हमारे चंद्रशेखर में कोई अवगुण नहीं है. वे किसी के बहकावे में ऐसे बयान देते हैं. हम लोग धर्म और परंपरा को मानने वाले लोग हैं, हमारी कुलदेवी ज्वालामुखी हैं. वे गांव में आधे घंटे के लिए भी आते हैं तो गहवर में जाकर कुलदेवी को प्रणाम जरूर करते हैं."
“किसके बहकावे में?"
"और किसके, लालूजी के और तेजस्वी के बहकावे में कहते हैं."
उनकी इतनी-सी बात सुनते ही चंद्रशेखर के मैनेजर जनार्दन शर्मा गरम हो जाते हैं और फिर लालू बनाम मोदी, भाजपा बनाम इंडिया की वह अंतहीन बहस शुरू हो जाती है, जो आजकल हर चौराहे पर अक्सर दिखने लगी है. दिलचस्प है कि इस बहस में शिक्षा मंत्री के मैनेजर अकेले मोदी के विरोध का मोर्चा संभाले नजर आते हैं. मंत्री जी के परिवार के ज्यादातर लोग मोदी के पक्ष में तर्क देने लगते हैं.
“आप लोग तो परिवार के आदमी होकर भी चंद्रशेखर जी की पार्टी के खिलाफ हैं?"
इस सवाल पर रत्नेश यादव कहते हैं, "शेखर के खिलाफ नहीं हैं. वो तो जीतेगा ही. मगर एमपी में हम लोग वोट उनकी पार्टी को नहीं देंगे, इतना तय है."
Diese Geschichte stammt aus der October 04, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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