एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर को एक आदेश जारी करके छत्तीसगढ़ पुलिस को इसकी जांच की स्वायत्तता प्रदान कर दी. कोर्ट ने इस मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) की जांच में राज्य पुलिस की भागीदारी के विरोध को खारिज कर दिया. भूपेश बघेल सरकार लंबे समय से इस बात पर जोर दे रही थी कि एनआइए जांच के मामले में साजिश के पहलू को नजरअंदाज कर दिया गया था, इसीलिए राज्य पुलिस को घटना की जांच की अनुमति दी जानी चाहिए.
आज से 10 साल पहले वह मनहूस दिन, जब घातक हथियारों से लैस माओवादियों ने जगदलपुर जिले के झीरम घाटी इलाके में कांग्रेस नेताओं के एक काफिले पर घात लगाकर हमला किया था. उसमें शीर्ष कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल, तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल समेत 30 से ज्यादा लोग मारे गए थे. सांसद महेंद्र कर्मा और पूर्व विधायक उदय मुदलियार भी इसी काफिले में शामिल थे. ये नेता सुकमा से लौट रहे थे, जहां उन्होंने पार्टी की परिवर्तन यात्रा के तहत आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत की थी. राज्य में उसी वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने थे.
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों की ओर से राजनैतिक प्रतिक्रियाओं की जैसे एक लहरसी दौड़ पड़ी है. भाजपा नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी सत्ता में आने के तुरंत बाद इस मामले की जांच कराएगी. उनके शब्दों में, "जो व्यक्ति यह कहता रहा कि उसकी जेब में साजिश के सबूत हैं, उसने इसे एनआइए के सामने पेश करने की जहमत नहीं उठाई, जो पिछले पांच वर्ष से मामले की जांच कर रही है."
Diese Geschichte stammt aus der December 13, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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