इस बार की सर्दियों में भाजपा ने जिस तरह के चौंकाऊ फैसलों का सिलसिला शुरू किया, उसमें सबसे ज्यादा हैरत में डाला राजस्थान में मुख्यमंत्री की उसकी पसंद ने. उत्तर भारत के जिन तीन राज्यों में पार्टी ने जीत हासिल की थी, उनमें सबसे देर से और सस्पेंस के साथ यहीं घोषणा हुई. हालांकि, इस पद की मजबूत दावेदार वसुंधरा राजे ने इसका अंदाजा लगा लिया होगा, जब स्पष्ट विकल्पों को पार्टी ने नजरअंदाज कर दिया. उसने उन नामों पर विचार किया जो 2024 में लोकसभा चुनाव के लिए जाति समीकरणों को संतुलित करने में कारगर थे. इसलिए मध्य प्रदेश में अनुभवी ओबीसी नेता को स्थान दिया गया और छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी नेता को चुना गया. तो फिर राजस्थान में क्या होने वाला था?
एक ब्राह्मण के हाथ बाजी लगी - 56 वर्षीय भजनलाल शर्मा. पार्टी ने दो राज्यों में पिछड़े वर्ग की राजनीति की विवशताओं पर ध्यान दिया; राजस्थान में सामान्य वर्ग से नियुक्ति करके उसने खुद को "आरक्षित जातियों की पार्टी" बनने के किसी भी आरोप से बचा लिया. चुनाव ब्राह्मण और राजपूत के बीच होना था. ऐसे में दो बार राजपूत मुख्यमंत्री रह चुकने के कारण पलड़ा ब्राह्मण उम्मीदवार के पक्ष में झुक गया. यह समुदाय राज्य में संख्यात्मक रूप से भले ज्यादा महत्व का न हो लेकिन परंपरागत रूप से इसका प्रभाव कहीं अधिक है. किसी अन्य राजपूत को कुर्सी सौंपने से भी जाट नाराज हो सकते थे, जब तक कि पसंद जाट कुल की बहू राजे की न हो. भाजपा के पास कहीं भी कोई ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं है - उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी दोनों राजपूत हैं. राजस्थान में राजपूतों ने हमेशा भाजपा को वोट दिया है. ब्राह्मण वोट कांग्रेस और भाजपा में बंटा है. अब ब्राह्मण सीएम नियुक्त होने से भाजपा को इस बिरादरी के पूरे वोट आकर्षित होने की उम्मीद है.
शर्मा इस भूमिका में पूरी तरह से फिट बैठते हैं. स्वभाव से वे विनम्र और प्रतिबद्ध पार्टी कार्यकर्ता हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में भी उनकी अच्छी छवि है. सत्ता के प्रति उन्होंने कभी भी कोई लालसा नहीं दिखाई और हमेशा सुर्खियों से दूर रहे.
सभी पैमानों पर खरे
Diese Geschichte stammt aus der December 27, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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