मार्च 2020 के बाद कोविड-19 महामारी की तीन लहरों से देश की अर्थव्यवस्था पस्त हुई, तो यह अनुमान लगाना मुश्किल हो गया कि कितनी तेजी से उसकी बहाली हो सकती है. आखिरकार, महामारी से लाखों नौकरियों पर असर पड़ा, हजारों छोटे, मंझोले और लघु उद्योग (एमएसएमई) बर्बाद हो गए और आपूर्ति श्रृंखलाएं थम गईं. केंद्र ने महामारी के दौरान उद्योगों और कारोबार की मदद के लिए कई तरह के उपायों का ऐलान किया, जो 20 लाख करोड़ रुपए के आत्मनिर्भर भारत पैकेज का हिस्सा थे. उसमें एमएसएमई और उत्पादन इकाइयों को बिना गिरवी रखे कर्ज की पेशकश और दूसरी प्रोत्साहन योजनाएं शामिल थीं. इन उपायों अलावा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने एकाधिक बार ब्याज दरों में कटौती का ऐलान किया, जिससे कर्ज सस्ता हो गया, और कर्ज के भुगतान पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी गई. जैसे-जैसे कोविड-19 का असर कम हुआ और हालात सामान्य हुए, मांग तेजी से बढ़ी, जिससे बिक्री और उत्पादन ने रफ्तार पकड़ी. सरकार ने निजी क्षेत्र के निवेश में कमी की भरपाई के लिए देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण पर अपने खर्च को काफी बढ़ा दिया.
कोविड की वजह से वित्त वर्ष 2021 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 5.8 फीसद सिकुड़ जाने के बाद अगले दो वर्षों में क्रमश: 9 फीसद और 7.2 फीसद की वृद्धि अर्थव्यवस्था में दमखम का प्रमाण है. वित्त वर्ष 2024 में केंद्र को उम्मीद है कि विकास दर 7.3 फीसद रहेगी, जिससे भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा. अलबत्ता, इसे कई बड़े देशों में इकाई अंक की वृद्धि के आईने में देखा जाना चाहिए. जानकारों का कहना है कि देश में हर साल लाखों नौकरियां पैदा करने के लिए अर्थव्यवस्था में और तेज बढ़ोतरी की दरकार है.
Diese Geschichte stammt aus der February 21, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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