अपने ही पंथ की अनूठी उषा
India Today Hindi|February 28, 2024
कोसी की आंचलिक संवेदनाएं लेकर निकली यह सहज-सरल लेखिका कभी किसी खास विचारधारा में नहीं बंधी
पुष्यमित्र
अपने ही पंथ की अनूठी उषा

स्त्री रचनाकारों पर आलोचकों की निगाह न जाने पर वे कहती थीं कि हमें अपने बीच से समीक्षक तैयार करने होंगे. उन्होंने महिला संगठन भी बनाए पर नारीवादी कभी नहीं रहीं

उबाजी नहीं रहीं. भले ही वे 78 साल की हो गई थीं, कई दफा सार्वजनिक आयोजनों में व्हीलचेयर पर नजर आती थीं, कभी-कभी बीमार होने के चलते किसी जलसे में नहीं भी पहुच पातीं. फिर भी बिहार, खासकर पटना के साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक हलकों में उनकी लगभग सतत मौजूदगी रहती. तभी तो इतवार 11 फरवरी की दोपहर उनके निधन की खबर पर उन्हें जानने-चाहने वालों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी: अरे ! हम जैसे पत्रकारों को लगता था कि मिथिला, बिहार, साहित्य, स्त्री, इतिहास, संस्कृति किसी भी मसले पर उनसे कभी भी कुछ भी पूछा जा सकता है.

Diese Geschichte stammt aus der February 28, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.

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