पटना से मुजफ्फरपुर जाने के रास्ते में हाइवे के किनारे आम के एक बगीचे से सटे मैदान में छोटा और साधारण-सा मंच सजा है. सुबह नौ बजे से ही उसके आसपास हजारों की भीड़ जमा है. ग्यारह बजे के करीब एक रथनुमा बस से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पहुंचते हैं. उन्हें देखते ही समर्थकों की भीड़ 'वीर तेजस्वी जिंदाबाद' के नारे लगाने लगती है. कई बच्चे, किशोर और युवा पेड़ों, बसों और टेंपुओं की छत पर चढ़कर उन्हें देख रहे हैं. भीड़ में खड़े सरैया से आए 66 साल के रामनिहोरा राय कहते हैं, "इनकर बाबू जी को देखने के लिए भी ऐसने भीड़ होती थी. समर्थक तो समर्थक, विरोधी भी लालू जी को सुनने चले आते थे."
तेजस्वी इन दिनों 11 दिनों की जनविश्वास यात्रा पर निकले हैं. इस दौरान वे बिहार के 33 जिलों में जाकर इसी तरह की 33 सभाओं में शिरकत करने वाले हैं. सभाओं में वे जनता को यह समझाने की कोशिश करने वाले हैं कि उन्होंने पिछले 17 महीने में नीतीश कुमार के साथ उप-मुख्यमंत्री रहते हुए जितने काम किए, उतना काम नीतीश कुमार अपने 17 साल के पूरे कार्यकाल में नहीं कर पाए हैं. मंच से अपने काम की फेहरिस्त गिनाते हैं: पांच लाख नौकरियां, आरक्षण की सीमा को 75 फीसद तक बढ़ाना, जाति आधारित गणना कराना, सरकारी अस्पतालों की सूरत बदलना वगैरह-वगैरह. इस पूरी यात्रा में तेजस्वी अकेले हैं, न उनकी पार्टी का कोई बड़ा नेता उनके साथ है, न परिवार का कोई सदस्य उनके साथ यात्रा में उनके एक सहयोगी अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं, "अब तेजस्वी मतलब राजद और राजद मतलब तेजस्वी है. लालू अगर हैं भी तो पर्दे के पीछे."
Diese Geschichte stammt aus der March 06, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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