एनजीओ वाइल्डलाइफ एसओएस के गुरुग्राम के बाहरी इलाके गढ़ी हरसरू स्थित एक शेल्टर होम में एक इजिप्शियन गिद्ध टूटे पंख और न्यूमोनिया के इलाज का इंतजार कर रहा है. निष्प्राण-सा हो चुका पीली चोंच वाला यह पक्षी - जिसका औपचारिक नाम नियोफ्रॉन पर्कनोप्टेरस जिंजिनियानस (आखिर का शब्द तमिलनाडु के एक शहर जिंजी से लिया गया है) है- पिंजरे में बंद होने से और भी असहाय नजर आ रहा है. यही नहीं, उस पर एक और भारी बोझ भी है, क्योंकि इस प्रजाति के अन्य गिद्धों का सहीसलामत रहना भी उसके ठीक होने पर ही निर्भर करता है.
सफेद दुम वाले गिद्ध, भारतीय गिद्ध और लाल सिर वाले गिद्ध लगातार तेजी से घटते जा रहे हैं और उनकी संख्या में गिरावट का यह आंकड़ा क्रमश: 98 फीसद, 95 फीसद और 91 फीसद है. इसका असली कारण लंबे समय से जगजाहिर है, और यह है सूजन - रोधी दवा डाइक्लोफेनाक. इसका इस्तेमाल आम तौर पर पशुओं की विभिन्न बीमारियों के इलाज में किया जाता है. लेकिन यह दवा उन पक्षियों के लिए घातक साबित होती है, जो संक्रमित मवेशियों का शव खाते हैं और फिर एक या दो दिन बाद उनका गुर्दा काम करना बंद कर देता है.
Diese Geschichte stammt aus der March 13, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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