ध्वनि तरंगें उत्पन्न होने के बाद दरअसल नष्ट नहीं होतीं. ध्वनिशास्त्री बताते हैं कि हवा का ध्वनि विक्षोभ जब तक बराबर और विपरीत तरंग से नहीं टकराता, यह बस अपना विस्तार गंवा देता है, सुनाई नहीं देता, लेकिन लूप में लिपटे टेप की तरह ब्रह्मांड की दीवारों से टकराता हुआ वहीं गूंजता रहता है. संगीत इतिहासकारों के लिए वह सुन पाना आसान रहा हो सकता है जो 17वीं सदी के तंजौर में गाया जा रहा था, या जो 15वीं शताब्दी के जौनपुर में अपने हमाम की छतरी पर आराम फरमा रहे सुल्तान हुसैन शाह शर्की गाते थे, या जो संगीतशास्त्री मतंग ने सदियों पहले दक्कन के गांव-देहातों में सुना था. इन दिनों वे पाठ के खंडित टुकड़ों से हमारे श्रव्य इतिहास की तस्वीर बुनने को मजबूर हैं. मगर भविष्य की किसी भी मशीन के लिए 2024 के मार्च की हवा की नापाक खलबली को सुन पाना कहीं ज्यादा आसान होता.
सभागार में देर से आने वालों के लिए संक्षेप पूरी कहानी. मद्रास म्यूजिक एकेडमी ने 18 मार्च को टी.एम. कृष्णा को कर्नाटक संगीत के सर्वोच्च सम्मान कलानिधि अवार्ड से नवाजा. संगीत के आधार पर ऐतराज करने के बारे में कोई सपने में भी न सोचता. संजय सुब्रह्मण्यम के साथ उन्हें लंबे समय से उस जोड़ी में देखा जाता रहा है जो नई पीढ़ी को परिभाषित करती है. कसौटी के संवेदनशील दुभाषिये और आवाज में शहद के सुरों और कलाबाजी के बजाए रागात्मकता के जरिए साकार कलामर्मज्ञ मिजाज वाले कृष्णा को दरअसल 48 साल की उम्र में काफी देर से यह अवार्ड मिला. मगर देखते ही देखते चारों तरफ भेड़ियों की चीख-पुकार का ऐसा हाहाकार मच गया मानो किसी की पवित्रता भंग कर दी गई हो. गायिका और वायलिनवादक बहनों रंजनी - गायत्री ने कृष्णा के हाथों 'आध्यात्मिकता के निरादर' का हवाला देते हुए म्यूजिक एकेडमी के अगले सम्मेलन से नाम वापस ले लिया; त्रिचुर बंधु ने भी उनके 'अत्यधिक विभाजनकारी आख्यान' की दुहाई देते हुए यही किया. चित्रावीणा एन. रविकिरण ने अपना कलानिधि अवार्ड लौटा दिया. चूंकि कर्नाटक संगीत वैश्विक पदचिह्नों वाले साधकों और श्रोताओं के सुसंगत अंतः समूह से पहचाना जाता है, जिसका हरेक सदस्य स्वामित्व की गहरी भावना से ओतप्रोत है, इसलिए एक्स और फेसबुक पर भी राय और टिप्पणियों की बाढ़ आ गई.
Diese Geschichte stammt aus der April 10, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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