राज्य में उसे मुख्य चुनौती दे रही कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में छह-सात सीटों पर इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार जीत सकते हैं. दूसरी तरफ, भाजपा नेता भी अनौपचारिक बातचीत में मान रहे हैं कि 2019 की सफलता दोहराना काफी मुश्किल है. उनके मुताबिक, पार्टी को इस बार एक या दो सीटों का नुक्सान हो सकता है.
जिन सीटों पर केंद्र और राज्य की सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है, उनमें रोहतक सबसे आगे है. दिल्ली से सटी इस सीट पर 2019 में भाजपा के अरविंद शर्मा ने कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा को 7,503 वोटों से हराया था. यह ऐसी सीट है जहां भाजपा पहली बार 2019 में ही जीती थी. जिस जनसंघ से भाजपा निकली है, उसके उम्मीदवार जरूर यहां से दो बार 1962 और 1971 में चुनाव जीते थे. यानी यह कांग्रेस का एक मजबूत किला है..
पिछले करीब तीन दशकों से इस सीट पर कांग्रेस की मजबूती की एक प्रमुख वजह हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं. 1991 में भूपेंद्र हुड्डा यहां से पहली बार सांसद बने और तब से 2004 तक के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 1999 का चुनाव हारे. लेकिन जब 2004 के अंत में वे हरियाणा के मुख्यमंत्री बने तो फिर 2005 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा इस सीट से सांसद बने. दीपेंद्र न सिर्फ 2009 में यह सीट जीतने में कामयाब हुए बल्कि नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद 2014 में भी उन्होंने यह सीट अपने पास बरकरार रखी.
आखिर जिस सीट पर हुड्डा परिवार का इतना असर है, उस पर 2019 में दीपेंद्र हुड्डा कैसे हार गए? वे इसके जवाब में बताते हैं, "मेरे संसदीय क्षेत्र में सेना से जुड़े परिवारों की बड़ी संख्या है. बालाकोट की वजह से इन लोगों में मोदी सरकार के प्रति समर्थन का भाव था. फिर भी स्थानीय लोगों के बीच मुझे ज्यादा बढ़त मिल रही थी लेकिन मैं पोस्टल बैलेट में मामूली अंतर से हार गया. इस बार यहां ऐसा कुछ नहीं है और मुझे बड़े अंतर से जीत का भरोसा है."
Diese Geschichte stammt aus der May 29, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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