भाई नरेश श्रीवास्तव की बात करते-करते उफन पड़ते हैं सुधीर : "मेरे भाई की मौत की सीबीआइ जांच नहीं हुई? मजदूर था इसलिए ? मोतिहारी चीनी मिल के मजदूरों ने पहले भी कई बार आत्मदाह की कोशिश की थी पर प्रशासन ने हर बार उन्हें बचा लिया था. उस बार सूचना के बाद भी प्रशासन कान में तेल डालकर सोया रहा. भाई का 114 महीने का बकाया वेतन नहीं मिला, पीएफ, ग्रेच्युटी और पेंशन की तो बात ही छोड़िए,"
नरेश ने 10 अप्रैल, 2017 को मोतिहारी चीनी मिल मजदूरों के लंबित वेतन की मांग पूरी न होने पर आत्मदाह कर लिया था. मोतिहारी की श्री हनुमान चीनी मिल 2002 से ही जैसे-तैसे चल रही थी. पिछले 15 साल में वह अक्सर बंद ही रही. किसानों को गन्ने का भुगतान नहीं मिल रहा था और 850 से ज्यादा मजदूरों का वेतन बकाया था. कई समझौते हुए मगर मिल मालिक उन्हें पूरा करने में असमर्थ रहा था. जान गंवाने वाले नरेश इन मजदूरों के संगठन के महासचिव और सूरज बैठा संयुक्त सचिव थे.
इस घटना की छाया आज भी पूर्वी चंपारण की लोकसभा चुनाव पर छाई हुई है. हर चौकचौराहे पर लोग यह कहते मिल जाते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोतिहारी आए नरेंद्र मोदी ने शहर के लोगों से वादा किया था कि अगली दफा जब वे आएंगे तो इस चीनी मिल में तैयार चीनी से बनी चाय पिएंगे. पर मिल न खुली. शहर से 15 किमी दूर बलथरवा गांव के किसान रघुवीर कुशवाहा पहले 5 एकड़ जमीन पर गन्ना उगाते थे. मिल बंद होने के बाद से इसे काफी कम कर दिया. " क्या करें. गन्ना बेचने 50 किमी दूर सिधवलिया चीनी मिल जाना पड़ता है. ढुलाई ही सौ रुपए क्विंटल हो जाती है. फिर वहां के किसान हमारे गाड़ी वालों से अच्छा व्यवहार नहीं करते. एक लाख रुपए से ज्यादा मोतिहारी चीनी मिल के पास बकाया हैं. जाने कब मिलेंगे ! " क्षेत्र में मिले कई और किसानों ने गन्ने का रकबा कम करने की बात कबूली.
Diese Geschichte stammt aus der May 29, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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