गांधी परिवार और झारखंड के सोरेन परिवार का राजनैतिक घटनाक्रम अब काफी हद तक मिलने लगा है. झारखंड में हर कोई जानता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के प्रमुख गुरुजी यानी शिबू सोरेन के राजनैतिक निर्णय उनके बड़े बेटे दुर्गा सोरेन ही लिया करते थे. लोग मानते थे कि उनके उत्तराधिकारी वही होंगे. लेकिन एक सड़क दुर्घटना में 21 मई, 2009 को उनकी मृत्यु हो गई. उसके बाद कमान इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हेमंत सोरेन के हाथ में आ गई.
दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन के मुताबिक, यहीं से उनके प्रति परिवार का व्यवहार बदलने लगा. हालांकि इस बीच वे जेएमएम में बनी रहीं और दुमका जिले की जामा विधानसभा सीट से तीन बार विधायक भी बनीं. लेकिन 2019 में जब कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सहयोग से पूरे दमखम के साथ हेमंत की सरकार बनी, तो सीता ने अपने लिए भी मंत्री पद मांगा. इधर हेमंत सोरेन जेल गए, चंपाई सोरेन ने नेतृत्व संभाल लिया. नई सरकार को समर्थन देने वे राजभवन इसी शर्त पर पहुंची थीं कि उन्हें इस बार तो मंत्रिमंडल में जरूर मौका मिलेगा. लेकिन उनकी जगह हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन को मौका मिला. बीते चार साल की नाराजगी इस हद तक पहुंच गई कि उन्होंने 19 मार्च को जेएमएम से पल्ला झाड़कर धुर विरोधी भाजपा का दामन थाम लिया. अब वे आर-पार की लड़ाई लड़ने जा रही हैं. रणक्षेत्र वही दुमका है, जहां से शिबू सोरेन पहली बार और कुल सात बार सांसद बने.
साफ है, सीता सोरेन ने हेमंत सोरेन की जगह परोक्ष तौर पर ही सही, पार्टी का नेतृत्व कर रहीं और इंडिया गठबंधन की प्रमुख आवाज बन चुकीं कल्पना सोरेन को पहली चुनौती दे डाली है. चुनौती को स्वीकार भी कर लिया गया है. कल्पना भी अपने प्रत्याशी और पार्टी के वरिष्ठ नेता नलिन सोरेन के लिए प्रचार करने निकल चुकी हैं. आखिर, सवाल तो विरासत अपने पास रखने का ही है. सवाल यह भी है कि दुमका जेएमएम के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
Diese Geschichte stammt aus der June 05, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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