दक्षिण एशिया में सत्ता लगातार बंदूक की नली या तानाशाह के जैकबूट से नहीं, बल्कि उसके जनसमूहों के विशाल जत्थों से निकलती रही है. जरा आसपास देखिए, म्यांमार में मिन आँग लाइंग की अगुआई वाला सत्ताधारी सैन्यगुट, जिसने आँग सान सू की की लोकतांत्रिक ढंग से चुनी सरकार को 2021 में बर्खास्त कर दिया था, आज खूनी गृह युद्ध का सामना कर रहा है, जिसमें विद्रोहियों ने उसके आधे भूभाग पर कब्जा कर लिया है. श्रीलंका में ताकतवर राजपक्षे भाई, गोटाबाया और महिंदा, जिन्होंने क्रमशः राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री रहते इस द्वीप राष्ट्र को अपनी पारिवारिक जागीर की तरह चलाया, 2022 में अत्यधिक महंगाई और कम आमदनी की वजह से जनविद्रोह के बाद सुरक्षित जगह पर भागने को मजबूर हुए. फिर 2023 में पाकिस्तानी फौज ने अकल्पनीय घटता देखा, जब अपदस्थ प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी का विरोध कर रही भीड़ दनदनाते हुए लाहौर कोर कमांडर के घर में घुस गई और रावलपिंडी में फौजी मुख्यालय तक पर हमला बोल दिया. अभी पिछले ही हफ्ते यह शेख हसीना थीं, जिन्होंने हाल ही में बांग्लादेश के प्रधानमंत्री के पद पर रिकॉर्ड 20 साल पूरे किए थे (हालांकि लगातार नहीं) और सोचती थीं कि वे अपराजेय हैं, उन्हें जनाक्रोश का दंश झेलना पड़ा जब छात्रों के छोटे-मोटे विरोध प्रदर्शन के रूप में शुरू हुआ आंदोलन देखते ही देखते इस कदर विराट जनविद्रोह में फट पड़ा कि सेना के हेलिकॉप्टर में सवार होकर भारत भागने के लिए हसीना को महज 45 मिनट मिले.
Diese Geschichte stammt aus der August 21, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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जनसंख्या में गिरावट की आशंकाओं ने परिवार नियोजन पर बहस को सिर के बल खड़ा कर दिया है, क्या परिवार बड़ा बनाने के पैरोकारों के पास इसकी वाजिब वजहें और दलीलें हैं ?
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बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न जारी है, दूसरी ओर इस्लामी कट्टरपंथ तेजी से उभार पर है. परा घटनाक्रम भारत के लिए चिंता का सबब
'इससे अच्छा तो झाइदारिन ही थे हम'
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