भारत को वैश्विक दिग्गज देश बनना है, तो उसकी तेज आर्थिक वृद्धि व समृद्धि के लिए विशालकाय आबादी का सेहतमंद होना बेहद अहम और जरूरी है. आम जनता के लिए स्वास्थ्य को सुलभ और सस्ता तो बनाना ही होगा, साथ ही जीवनशैली से जुड़ी उन मारियों की नई महामारी से निबटने के तौर-तरीकों पर भी बहुत ध्यान देना होगा, जिन्हें गैरसंचारी रोगों (एनसीडी) की श्रेणी में रखा गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 'इनविजिबल नंबर्स' (अदृश्य आंकड़े) शीर्षक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में भारत में हुई मौतों में से 66 फीसद उच्च रक्तचाप, कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज, फेफड़ों की बीमारी, लकवे, गुर्दे की बीमारी और मानसिक विकारों सरीखे गैरसंचारी रोगों के कारण हुई थीं. रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत में 30 या उससे ऊपर की उम्र के 22 फीसद लोग अपनी 70वीं सालगिरह से पहले इन बीमारियों की चपेट में आ जाएंगे. जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट और सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. दोराईराज प्रभाकरण कहते हैं, “एनसीडी के इलाज का न केवल वित्तीय बोझ ज्यादा है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता में कमी और मृत्यु दर में बढ़ोतरी भी ज्यादा है.'' भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के 2017 के एक अनुमान के मुताबिक, भारत में एनसीडी से होने वाली मौतों का हिस्सा 1990 में 37.9 फीसद से बढ़कर 2016 में 61.8 फीसद हो गया. डॉ. प्रभाकरण कहते हैं, "संक्रामक रोगों के विपरीत, गैरसंचारी बीमारियां जिंदगी भर आपके साथ रहती हैं और सतर्क निगरानी तथा दवा की मांग करती हैं."
Diese Geschichte stammt aus der August 28, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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